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जी-7 की बैठक

दिल्ली, एजेंसी। कोरोना महामारी के बीच विदेश मंत्री जयशंकर जी-7 बैठक में बतौर अतिथि शामिल होने लंदन पहुंचे हुए हैं। इस दौरान उनकी अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से कोरोना महामारी समेत कई मसलों पर गम्भीर चर्चा हुई। भारत-अमेरिका में वैक्सीन उत्पादन को लेकर भी चर्चा हुई, इसके अलावा सप्लाई श्रृंखलाओं पर ध्यान केन्द्रित किया। अमेरिका ने भारत को आक्सीजन और रेमडेसिविर भेजी थी। जी-7 के चेयरमैन के रूप में ब्रिटेन ने भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के महासचिव को आमंत्रित किया गया था। यद्यपि बैठक में प्रशांत महासागर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद म्यांमार की हिंसा और जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ रूस और चीन के दुष्प्रचार तथा पश्चिमी देशों के खिलाफ उनके रवैये पर भी चर्चा हुई।

जी-7 दुनिया के सात सबसे बड़े विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है। यह समूह खुद को कम्युनिटी आॅफ वैल्यूज यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय मानता है। स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और कानून का शासन और समृद्धि और सतत् विकास इसके प्रमुख सिद्धांत हैं। शुरूआत में यह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी। इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के सम्भावित संसाधनों पर विचार किया गया था। 1976 में कनाडा भी इस समूह में शामिल हो गया। इस तरह यह जी-7 बन गया। जी-7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए हर साल मिलते हैं। प्रत्येक सदस्य देश बारी-बारी इस समूह की अध्यक्षता करता है और दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करता है। यह सारी प्रक्रिया एक चक्र में चलती है। ऊर्जा नीति, जलवायु परिवर्तन, एचआईवी-एड्स और वैश्विक सुरक्षा जैसे कुछ विषय हैं, जिन पर शिखर सम्मेलनों में चर्चा हुई थी। शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। जी-7 का 45वां शिखर सम्मेलन फ्रांस में हुआ था जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित किया गया था। यद्यपि कुछ देश जी-7 की आलोचना करते हैं कि यह कभी भी प्रभावी संगठन नहीं रहा है लेकिन समूह ने दुनिया भर में 2.7 करोड़ लोगों की जान बचाई है। जी-7 ने एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक फंड की शुरूआत की थी, जिसमें कई देशों की मदद की गई और लोगों के जीवन को बचाया गया। जी-7 के चलते ही 2016 में पैरिस जलवायु समझौता लागू हो पाया था।

वर्ष 1998 में इस समूह में रूस भी शामिल हो गया था और यह जी-7 से जी-8 बन गया था लेकिन 2014 में यूक्रेन में क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से जल्द मुक्त कर दिया गया था। चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर भी वह इस समूह का हिस्सा नहीं है। चीन में प्रति व्यक्ति आय, सम्पत्ति जी-7 समूह देशों के मुकाबले काफी कम है। ऐसे में चीन को विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता। जी-7 देशों के बीच भी कई बिन्दुओं को लेकर मतभेद है लेकिन कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सभी एकजुट हैं। विदेश मंत्री जयशंकर की जी-7 नेताओं के साथ सीधी बैठक काफी महत्वपूर्ण है। इस समय देश के सामने अभूतपूर्व संकट है। इसलिए हमें विदेशी मदद और उदारता की जरूरत है। एक तरफ बड़ी संख्या में संक्रमितों के उपचार की चुनौती है तो दूसरी तरफ कोरोना वायरस के नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं।

कहते हैं यदि आपने जरूरत के वक्त निस्वार्थ भाव से किसी की मदद की है तो वह एक न एक दिन लौटकर जरूर आती है। विदेश मंत्री की अपील पर सऊदी अरब, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय आयोग, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका और कई छोटे देश भी भारत की मदद कर रहे हैं। अमेरिका हमारे सबसे बड़े व्यापार साझीदारों में से एक है और पिछली सदी के अंतिम दशक में अब तक भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हुए हैं। यद्यपि अमेरिका ने पहले थोड़ा गोलमोल करके जवाब दिया लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को कहना पड़ा, जिस तरह महामारी की शुरूआत में भारत ने अमेरिका की मदद की थी, उसी तरह जरूरत आ पड़ी है कि हम भारत की मदद करें। वैश्वीकरण के दौर में सभी देशों को मिलकर भीमकाय कोरोना से जंग लड़नी होगी। अगर जी-7 महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन उत्पादन की संयुक्त व्यवस्था बनाता है तो वैक्सीन की कमी का संकट हल हो सकता है।

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