राष्ट्रनायक न्यूज।
जब बाकी सब विफल हो जाते हैं, तो भारत के पास एक आखिरी रास्ता बचताहै-सशस्त्र बल, चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो, ग्लेशियर का फटना हो, ट्रेन दुर्घटना हो या महामारी हो। नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि सेना की मेडिकल बटालियन को पूर्वोत्तर से बिहार में कोविड अस्पताल स्थापित करने के लिए एयरलिफ्ट किया गया है, क्योंकि वहां संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। यह गतिविधि अन्य सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों के अतिरिक्त है, जिन्हें अन्य संगठनों ने स्थापित किया है। इससे राज्यों की चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि हुई है। वह भी तब, जब इन बलों को बड़ी संख्या में बीमार अपने मौजूदा और सेवानिवृत्त कर्मियों के लिए कैटरिंग की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है।
कुछ मामलों में सेना ने आम लोगों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने के लिए अपने अस्पतालों को भी आंशिक रूप से खोला है। इसके अलावा, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से महामारी से लड़ने के लिए आवश्यक विशाल संसाधनों को लाने में वायु सेना और नौसेना को लगाया गया है। घरेलू स्तर पर वायु सेना और थल सेना संसाधनों को उन स्थानों पर पहुंचाती है, जहां जरूरत है। यह संभवत: अग्रिम मोर्चे पर तैनात सभी संगठनों में सर्वाधिक सक्रिय दिखाई दे रही है। चीन में उत्पन्न वायरस ने पूरे भारत में आतंक फैलाया है, जिसके परिणामस्वरूप अस्पताल के बिस्तर, जीवन रक्षक दवाइयों और सहायक प्रणालियों में कमी आई है।
सरकारी और निजी अस्पताल भारी दबाव में हैं। क्षमता से अधिक मरीज भरे रहने के अलावा कई अस्पताल चिकित्सीय कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में वे पीड़ित हैं। देश की चिकित्सा बिरादरी इस लड़ाई को बहादुरी से लड़ रही है। कई कमियों के बावजूद देश में एक भी अस्पताल बंद नहीं है। दुनिया भर से संकेत मिलने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें देश को दूसरी लहर के लिए तैयार करने में विफल रहीं। खतरे का आकलन करने और राजनेताओं के सलाह देने के लिए जिम्मेदार नौकरशाही सोती रही, जबकि राजनीतिक पार्टियां चुनाव और धार्मिक आयोजनों को लेकर ज्यादा चिंतित थीं। पहली लहर के बाद सरकार ने समय से पहले जीत की घोषणा कर दी, जिसके चलते आम आदमी लापरवाह हो गया और निर्धारिेत प्रोटोकॉल की अनदेखी करने लगा। सरल शब्दों में कहें, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक विफलता थी।
राज्य स्तरीय सुविधाओं की मदद करने के लिए केंद्र सरकार के संगठनों को लगाया गया, हालांकि वह भी सीमित स्तर पर। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने कुछ चिकित्सा सुविधाएं खोलीं और उन्हें अपने चिकित्सा पेशेवरों की टीमों के जरिये संचालित किया। उनके अस्पताल दूरदराज के इलाकों में स्थानीय आबादी के लिए काम करते हैं। रेलवे ने अपने कोचों को उन शहरों में आइसोलेशन सेंटरों में बदल दिया, जहां संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी। इन्हें रेलवे से जुड़े डॉक्टरों द्वारा चलाया जाता था। मौजूदा अस्पतालों का बोझ कम करने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अहमदाबाद, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में अस्थायी अस्पताल स्थापित किए। ढांचा खड़ा हो गया, फर्नीचर भी आ गए, लेकिन बड़ी जीवन रक्षक सुविधाएं वहां नहीं हैं।
सरकारी संस्था होने के नाते, केंद्र से धन मिला, जबकि डीआरडीओ ने इसका श्रेय लिया। डीआरडीओ ने यह भी घोषणा की कि हर प्रतिष्ठान में पूर्ण अस्पताल होने के बावजूद, इन सुविधाओं को चलाने के लिए उसके पास कोई चिकित्सा संसाधन नहीं हैं। राज्य सरकारों ने केंद्र से चिकित्सीय सहायता की मांग की। सरकार ने इसे रक्षा मंत्रालय की ओर बढ़ा दिया। अंतत: अत्यधिक तनाव झेल रहे सशस्त्र बल चिकित्सा बिरादरी को तैनात किया गया। गृह मंत्रालय के तहत अन्य केंद्रीय एजेंसियों का कम उपयोग किया गया।
यदि केवल अस्पताल बनाना ही डीआरडीओ का उद्देश्य था, तो उन्हें मौजूदा अस्पतालों के विस्तार या अस्पतालों के आसपास के क्षेत्र में निर्माण का काम सौंपा जाना चाहिए था। इस तरह की कार्रवाई से चिकित्सा कर्मचारी की बचत होती। सशस्त्र बल इन अतिरिक्त कर्मचारियों को मुख्यालय और प्रशिक्षण संस्थानों सहित अन्य जगहों से बाहर निकाल रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, सशस्त्र बलों को योजना बनाने के स्तर पर कभी भरोसे में नहीं लिया गया, लेकिन कोई विकल्प नहीं होने के बहाने उसे काम पर लगा दिया जा रहा है। अन्य सरकारी एजेंसियों के संसाधनों की तैनाती के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन उनकी अनदेखी की जा रही है। राष्ट्र सशस्त्र बलों पर भरोसा करता है और उनका आगमन विश्वास को दशार्ता है। राष्ट्रीय स्तर की आपदाओं और संकट से निपटने के लिए अन्य सरकारी एजेंसियां भी हैं, लेकिन जब इस महामारी ने देश को प्रभावित किया, तो वे गायब हैं।
हालांकि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और रेलवे को सीमित स्थानों पर देखा गया है, लेकिन सशस्त्र बलों की तुलना में राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) गायब है। एनडीआरएफ की स्थापना 2006 में आपदा प्रतिक्रिया संबंधी कर्तव्यों के लिए की गई थी। यह रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु आपात स्थितियों से निपटने में काफी अनुभवी होने का दावा करता है। इसमें सलाहकारों का जमावड़ा भी है, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं, लेकिन यह मौजूदा लड़ाई से गायब है। सशस्त्र बलों के जवानों पर से दबाव कम करने के लिए इसके मेडिकल स्टाफ को अस्पतालों में तैनात किया जा सकता है, जबकि इसके तकनीकी कर्मचारी आॅक्सीजन प्लांट और अन्य आवश्यक उपकरण संचालित कर सकते हैं। अन्य कर्मियों को प्रशासनिक और सुरक्षा कार्यों के लिए तैनात किया जा सकता है।
ऐसा लगता है कि सरकार के पास अब भी कोई कार्य-योजना नहीं है। यह तदर्थ तरीके से काम कर रही है और जहां भी यह फंस जाती है, सशस्त्र बलों का दोहन करती है। अन्य एजेंसियां, जो समान रूप से योगदान कर सकती हैं, गायब हैं। यही समय है, जब सरकार की सभी एजेंसियों को तैनात किया जाए, राष्ट्र के सभी संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाए और सभी एजेंसियां आम जनता को इस संकट से उबारने के लिए एक साझा लक्ष्य के साथ एकजुट होकर काम करें।
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