राष्ट्रनायक न्यूज

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इस बार भी नहीं होगा चमलियाल मेला, लगातार चौथे साल भारत-पाक के बीच नहीं बँटेगा शर्बत

राष्ट्रनायक न्यूज। यह लगातार चौथा साल है जब जम्मू के इंटरनेशनल बार्डर पर लगने वाले चमलियाल मेले में परंपरा टूटेगी। चार सालों से दोनों मुल्कों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाने वाला ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ नहीं बंटेगा। लगातार दूसरे साल इस मेले को कोरोना के कारण रद्द कर दिया गया है जबकि वर्ष 2019 में इसे पाक गोलाबारी के डर से आयोजित नहीं किया गया था। उससे पहले वर्ष 2018 में पाक सेना के अड़ियल रवैये के कारण भारतीय पक्ष ने ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ उस पार भिजवाने से मना कर दिया था। इस बार यह मेला 24 जून को आयोजित होना था।

अधिकारियों ने इस बार इस ओर के लोगों को भी दरगाह पर एकत्र होने से मना कर दिया है। इसलिए इस बार दोनों मुल्कों के बीच बंटने वाली शक्कर व शर्बत की परंपरा टूट जाएगी। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि यह परंपरा टूटने जा रही हो बल्कि अतीत में भी पाक गोलाबारी के कारण कई बार यह परंपरा टूट चुकी है और इसमें दूसरी बार कोरोना संकट भी एक कारण बन गया है। दरअसल इंटरनेशनल बॉर्डर पर जीरो लाइन पर चमलियाल मेला तभी संभव होता है जब पाकिस्तान की ओर से विश्वास दिलाया जाता है कि किसी भी हालात में मेले के दौरान गोलीबारी या कोई अन्य शरारत नहीं की जाएगी। वर्ष 2018 में सीमा पर भारी गोलाबारी कर रहे पाकिस्तान ने मेले को लेकर सुचेतगढ़ में हुई सेक्टर कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग में अपने तेवर नरम करने की दिशा में कोई गंभीरता नहीं दिखाई थी। ऐसे हालात में लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने 2018 में भी मेले को रद्द कर दिया था।

जानकारी के लिए बता दें कि यह मेला भारतीय क्षेत्र में एक दिन तो पाकिस्तान में सप्ताह भर चलता है। भारतीय क्षेत्र में चमलियाल मेला एक दिन चलता है। वहीं जीरो लाइन से 300 मीटर दूर पाकिस्तान के सैदांवाली गांव में यह करीब एक हफ्ता चलता है। बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2017 तक चमलियाल मेले के आयोजन में पाकिस्तान भी गंभीरता दिखाता रहा है, लेकिन वर्ष 2018 में उसने मेले से ठीक पहले खूनखराबा करने की मंशा से गोलाबारी कर स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि वह मेले के प्रति गंभीर नहीं है। मेले के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह थी कि जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ था तो दरगाह के दो भाग हो गए थे। असली दरगाह इस ओर रह गई और उसकी प्रतिकृति पाकिस्तानी नागरिकों ने अपनी सीमा चौकी सैदांवाली के पास स्थापित कर ली।

बताया यही जाता है कि पाकिस्तानी नागरिक बाबा के प्रति कुछ अधिक ही श्रद्धा रखते हैं तभी तो इस ओर मेला एक दिन तथा उस ओर सात दिनों तक चलता रहता है जबकि इस ओर 60 से 70 हजार लोग इसमें शामिल होते रहे हैं जबकि सीमा के उस पार लगने वाले मेले में शामिल होने वालों की संख्या चार लाख से भी अधिक होती है। मेले में आने वाले इस बार निराश हुए थे क्योंकि मेले का मुख्य आकर्षण दोनों देशों के बीच-शक्कर व शर्बत-का आदान प्रदान का दृश्य होता था जो इस बार भी नदारद होगा।

मेले की कथा: परंपरा के अनुसार पाक स्थित सैदांवाली चमलियाल दरगाह पर वार्षिक साप्ताहिक मेले का आगाज वीरवार को होता है और अगले वीरवार को समापन। जिस दिन भारतीय क्षेत्र दग-छन्नी स्थित दरगाह पर मेला लगता है, उस दिन पाकिस्तान को तोहफे के तौर पर पवित्र शरबत और शक्कर भेंट की जाती है।

जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है वह बाबा दीलिप सिंह मन्हास की समाधि है। इसके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया। उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली। इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काट कर हत्या कर दी। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है इसकी कोई जानकारी नहीं है।

इस मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा ट्रालियों व टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ तथा ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता है। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षा बलों के अतिरिक्त दोनों देशों के ट्रैक्टर भी शामिल होते हैं और पाक जनता की मांग के मुताबिक उन्हें प्रसाद की आपूर्ति की जाती है। बदले में सीमा पार से पाक रेंजर उस पवित्र चाद्दर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए लाते हैं जिसे पाकिस्तानी जनता देती है। दोनों सेनाओं का मिलन जीरो लाइन पर होता है। यह मिलन कोई आम मिलन नहीं होता।
सुरेश एस डुग्गर

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