राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

एसएफसी के पास गेहूं खरीद एजेंसियों का 376 करोड़ बकाया

राष्ट्रनायक न्यूज।

पटना (बिहार)। खरीदे गये गेहूं राज्य खाद्य निगम में जमा करने की गति तो तेज हो गई, लेकिन खरीद एजेंसियों के भुगतान की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ। अभी एजेंसियों का लगभग 376 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है। यह पैसा एजेंसियों ने किसानों को भुगतान कर दिया है, लेकिन निगम से उन्हें नहीं मिला। जब तक भुगतान नहीं होगा तब तक का सूद एजेंसियों को ही देना होगा। राज्य में इस साल सरकार ने गेहूं खरीद का नया रिकॉर्ड बनाया है। इसके लिए लगभग छह हजार पैक्स व व्यापारमंडल लगाये गये। साढ़े चार लाख टन से अधिक गेहूं की खरीद हुई है। 3.84 लाख टन गेहूं एजेंसियों ने एसएफसी में जमा कर दिया। इस गेहूं की कीमत के रूप में 753 करोड़ रुपये का भुगतान होना चाहिए। अब तक आधा ही भुगतान हो सका है। जितना दिन पैसा फंसा रहेगा उसके सूद का भुगतान एजेंसियों को करना होगा। इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति में किशनगंज, शेखपुरा, अरवल और बांका जिले की है। यहां लगभग 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान हो गया है। पटना में मात्र 43, भोजपुर में भी 40, नवादा में 26, सीतामढ़ी में 39 और गोपालगंज में 31 प्रतिशत ही भुगतान हो सका है।

खरीद एजेंसियों को सरकार उनकी सीसी लिमिट पर दो महीने का ही सूद देती है, लेकिन भुगतान के अभाव में उनका पैसा महीनों फंसा रहता है। इस परेशानी का खामियाजा भी किसी न किसी रूप में किसानों को ही भुगतना पड़ता है। लिहाजा अनाज खरीदने का सिस्टम कई परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पहले अनाज खरीदने के लिए एजेंसियां किसानों को परेशान करती हैं। बाद में खरीद होने पर एजेंसियों को पैसा भुगतान करने में राज्य खाद्य निगम परेशान करता है। बाद की इस परेशनी के कारण एजेंसियां किसानों का दोहन शुरू में ही कर लेती हैं। उन्हें पहले ही पता होता है कि सूद का भुगतान उन्हें करना पड़ेगा। जिलों के अधिकारियों का भी मौन समर्थन रहता है। खरीद अभियान में दो विभागों की जिम्मेवारी भी बड़ी परेशानी का कारण है। किसानों से खरीद करने का काम सहकारिता विभाग करता है और एजेंसियों को भुगतान खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग करता है। ऐसे में सहकारी एजेंसियां खरीद के बाद भुगतान के लिए दबाव अपने संबंधित विभाग पर बना नहीं पाती हैं।