राष्ट्रनायक न्यूज

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कोरोना काल में कांवड़ यात्रा!

राष्ट्रनायक न्यूज। कोरोना काल में हरिद्वार में कुम्भ के आयोजन के बाद महामारी के तेजी से फैलने से सबक लेते हुए उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द करने का फैसला किया है। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा है कि इस वक्त लोगों की जानें बचाना प्राथमिकता है लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि कांवड़ यात्रा कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए करवाई जाएगी। कांवड़ यात्रा के लिए समुचित व्यवस्थाएं भी करने के निर्देश दे दिए हैं। नए मुख्यमंत्री के लिए कांवड़ यात्रा को रद्द करने का फैसला लेना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने दृढ़ता का परिचय दिया है। पिछले वर्ष भी कांवड़ यात्रा रद्द कर दी गई थी। इससे पहले लोगों की जान की सुरक्षा के लिए अमरनाथ यात्रा रद्द कर दी गई थी और उत्तराखंड की चारधाम यात्रा भी रद्द कर दी गई थी। फिर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल की सरकारें लोगों की आस्था से जुड़ी कांवड़ यात्रा को खतरा क्यों नहीं मान रही। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा की अनुमति देने के मामले में गम्भीर रुख अपनाया है और इस संबंध में केन्द्र सरकार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया है।

कोरोना की दूसरी लहर के बाद लोगों ने शक्तिपीठों और पर्यटक स्थलों पर भीड़ लगा दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भीड़ की तस्वीरों को लेकर चिंता व्यक्त की है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट स्वयं संज्ञान लिया है तो उत्तर प्रदेश सरकार और केन्द्र को इस पर जवाब देना होगा। कोरोना काल में कांवड़ यात्रा को अनुमति देना कोरोना की तीसरी लहर को दावत देना है।

कांवड़ यात्रा में लोगों की आस्था है। श्रद्धालु हरिद्वार या गौमुख से गंगा जल लेकर अपने-अपने क्षेत्रों के शिवालयों में चढ़ाते हैं। यह सही है कि सरकारों को लोगों की आस्था का ध्यान रखना चाहिए लेकिन जब सवाल मानव जीवन की सुरक्षा का हो तो फिर उन्हें रद्द ही कर दिया जाना उचित है। अगर संक्रमणफिर फैलता है तो महामारी कई गुणा खतरनाक साबित हो सकती है। कांवड़ यात्रा केवल उत्तराखंड से जुड़ा मसला नहीं है, बल्कि इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा और दिल्ली से भी लोग आते हैं। बड़े धार्मिक आयोजनों में कोरोना बचाव के नियमों का पालन कराना प्रशासन के लिए बहुत मुश्किल होता है। हमने कोरोना काल में कई बार देखा कि आस्था महामारी पर भारी पड़ी। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब मौतों का आंकड़ा खतरनाक ढंग से बढ़रहा था तो घाटों पर आस्था की भीड़ आ गई थी। कानों से लटकते मास्क, एक-दूसरे से सटे लोग इस बात का एहसास दिला रहे थे कि शायद उन्हें कोरोना का कोई खौफ नहीं है।

पूरी दुनिया ने युद्ध, महामारी, अकाल, भूकम्प, सुनामी और भयंकर बाढ़ को झेला है। कोरोना महामारी से पहले भीषण प्लेग, हैजा आए और इससे लाखों लोग मर गए लेकिन ईश्वर में मनुष्य की आस्था बनी रही है। जब भी कोई महामारी आती है तो तर्कशास्त्री अपने तर्क देते हुए सवाल पूछते हैं। सवाल यह भी पूछा जाता है कि आदमी आराधना तो ईश्वर की करता है लेकिन संकट के समय अक्सर विज्ञान की ओर देखता है, जिसे इंसानों ने ही बनाया है। कोरोना वायरस के कहर के दौरान वैज्ञानिकों ने ही वैक्सीन और अन्य दवाएं ईजाद की हैं।

किसी भी महामारी का अंत विज्ञान से ही सम्भव है। कहते हैं कि अच्छे समय में हम भगवान को याद न करें लेकिन बुरे वक्त में भगवान से उस मुसीबत से निकालने की दुआ जरूर करते हैं। यह सही है कि कोरोना काल में भगवान के प्रति लोगों की आस्था बढ़ी है। विशेषज्ञों ने इससे बचने का एक ही तरीका बताया कि लोगों से सम्पर्क कम किया जाए और भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाने से परहेज किया जाए। महामारी से बचने के लिए बाजार, दुकानें, पार्क, आफिस, फैक्ट्रियां यहां तक के शक्तिपीठों और धार्मिक स्थलों को बंद करना पड़ा। हालांकि श्रद्धालुओं के लिए प्रभु के दर्शन करने के लिए भी वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिये आरती दर्शन की सुविधाएं शुरू की गईं।

कोरोना के नए-नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं। न तो कोरोना वायरस नदियों के पानी में बहा और न ही तेज हवाओं और तूफानों में बहा। न ही कोरोना वायरस मानसून की तेज बौछारों के साथ बहेगा। हर मजहब में हर तरह के लोग होते हैं। तार्किक सोच वालों से लेकर रूढ़िवादियों को अपनाने वाले। आपका अपने धर्म में यकीन रखना तब तक ही दुरुस्त है जब तक वो रूढ़िवादिता तक न पहुंचे। कोरोना पर काबू पाने के लिए बड़े अजीब-अजीब से तर्क दिये। बड़े धार्मिक आयोजनों से लोगों की जान जाती है तो यह भी ईश्वर को अच्छा नहीं लगेगा। बेहतर यही होगा राज्य सरकारें सोच-समझ कर फैसला लें। आईएमए पहले ही चेतावनी दे चुका है कि अगर धार्मिक आयोजन नहीं रोके गएतो फिर कोरोना की तीसरी लहर का आना तय हैै। कोरोना की तीसरी लहर का रोकना प्रकृति के साथ-साथ लोगों की प्रवृत्ति से ही सम्भव होगा। कांवड़ यात्रा को रोकने से लोगों की आस्था पर कोई चोट नहीं पहुंचने वाली। यहां तक पर्यटक स्थलों पर जाने का सवाल है, अभी लोगों को अपनी मस्ती पर नियंत्रणरखना ही होगा।

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