राष्ट्रनायक न्यूज

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यूट्यूब संगीत: दूसरों के सुनने के लिए अपने निजी संग्रह साझा कर रहे लोग

राष्ट्रनायक न्यूज।
एक गंभीर सड़क हादसे की वजह से इत्तफाक से मेरा यूट्यूब की संगीत की दुनिया से परिचय हुआ था। इस हादसे में मेरे एक पैर के टखने की हड्डी टूट गई थी और एक कंधा खिसक गया था, जिसकी वजह से मुझे कई हफ्तों तक बिस्तर पर रहना पड़ा था। मैं कोई किताब नहीं पढ़ सकता था, लेकिन मैं लैपटॉप खोलकर ईमेल चेक कर सकता था (और जरूरी होने पर एक हाथ की उंगलियों से थोड़ा बहुत टाइप कर जवाब दे सकता था)। यह हादसा 2012 के वसंत में हुआ था। इसके कुछ वर्षों पहले मैं उन कुछ सौ चुनींदा सौभाग्यशाली लाभार्थियों में से था, जिन्हें संगीत विद्वान और मलयाली लेखक एस गोपालकृष्ण की नियमित पोस्ट मिल रही थी। गोपाल हफ्ते में दो या तीन बार हमें शास्त्रीय संगीत का कोई हिस्सा और उस संगीत के अर्थ या महत्व के बारे में कुछ पंक्तियां भेजते थे। हमें यह सुबह-सुबह मिल जाता था, जिससे हम दिन भर में कभी भी इसे सुन सकते थे। चूंकि हादसे से पहले मेरी सुबहें काफी व्यस्त हुआ करती थीं, सो मैं गोपाल की पोस्ट को शायद ही तुरंत सुन पाता था। कुछ दिनों में जब एक साथ कई पोस्ट इकट्ठा हो जाती थीं, तब मैं उन्हें एक साथ सुन लेता था। मेरे मित्र के सुझाव पर कंप्यूटर पर शोध कार्य करते हुए बैकग्राउंड में बजते शास्त्रीय संगीत को सुनना मेरे लिए सुविधाजनक होता था।

टखने में प्लास्टर चढ़ने और कंधे में पट्टियां बंधने के कारण सुबह के समय मेरा मन कुछ उदास-सा रहने लगा। मेरे सामने पूरा दिन पड़ा होता और इस बात के कोई आसार नहीं थे कि मैं कब्बन पार्क में जाकर टहल सकूं। सुबह मन को ठीक करने के लिए मैंने संगीत का सहारा लिया। कंप्यूटर खोल कर मैं सबसे पहले गोपाल की मेल पढ़ता और फिर साथ दिए गए लिंक खोलकर संगीत सुनता। इसके नियमित होने के साथ ही मैंने पाया कि जो संगीत बज रहा था, उसके खत्म होने से पहले ही स्क्रीन पर कुछ अन्य रचनाएं नजर आने लगतीं और मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने लगतीं। पहले तो मैं गोपाल के सुझाए संगीत को एक-एक कर सुन लेता था और मेरी नजर स्क्रीन पर नहीं होती थी। लेकिन अब बिस्तर पर पड़े-पड़े यूट्यूब का एलोगरिथ्म मुझे लुभाने लगा और मैं अपना दर्द भूलकर संगीत का आनंद लेने लगा।

दरअसल एस गोपालकृष्ण के एक विशेष सुझाव ने मुझे पहली बार यूट्यूब से जोड़ा। उस सुबह उन्होंने मुझे महान कर्नाटक संगीत की गायिका एम एल वसंतकुमारी के गाए कृष्णा नी बेगने बारो की रिकॉर्डिंग भेजी। यह मेरा एक पसंदीदा गाना है। वसंतकुमारी को सुनने के बाद मैंने स्क्रीन पर जानी-मानी समकालीन गायिका बॉम्बे जयश्री के गाए गाने की लिंक देखी और उसे भी सुन डाला। इसे सुनते हुए मुझे इस गाने और अमेरिकी मूल के कर्नाटक संगीत के गायक जॉन हिगिंस से जुड़ा एक वाकया याद आया, जिसके बारे में मैंने कभी पढ़ा था। उड्डुपी शहर के एक प्रवास के दौरान हिगिंस को उनकी त्वचा के रंग के कारण कृष्णा मंदिर में प्रवेश देने से इन्कार कर दिया गया था। तब उन्होंने बाहर सड़क पर खड़े होकर कृष्णा नी बेगने बारो गाते हुए पुजारियों को शमिंर्दा कर दिया। हिगिंस जानबूझकर और बहुत पीड़ा के साथ मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा सुना रहे थे, जिसके मुताबिक 16 वीं सदी में कन्नड़ कवि कनकदास को उनकी निचली जाति के कारण प्रवेश से इन्कार कर दिया गया था। तब पुजारियों द्वारा बहिष्कृत भक्त ने प्रतिक्रिया में कृष्ण की स्तुति गाई, जिसके बाद (जैसा कि कहानी है) कृष्ण की एक मूर्ति मंदिर की दीवार तोड़ कर अपने इस सच्चे साधक के सामने प्रकट हो गई थी।

इस कहानी को याद करने के बाद मैंने यूट्यूब से आग्रह किया कि वह मुझे हिंगिस का गाया कृष्णा नी बेगने बारो सुनाए। इसके बाद ईसाई परिवार में पैदा हुए एक अन्य शानदार गायक के जे येसुदास के गायन का अनुरोध भी उसने तुरंत पूरा कर दिया। इन तरीकों से मेरी सुबह मस्त हो गईं और मैं अपना दर्द भूल गया। यूट्यूब के इस्तेमाल से पहले संगीत की मेरी चाह नेशनल प्रोग्राम (राष्ट्रीय कार्यक्रम) की रिकॉर्डिंग्स के सीडी तथा कैसेट्स के बरसों में एकत्र किए गए मेरे विशाल संग्रह से पूरी हो जाती थी। विशेष रूप से लंबी, अंतर-महाद्वीपीय उड़ानों में ये काम आते थे। मुझे जब वाद्ययंत्र सुनने का मन होता था, तब अली अकबर खान, निखिल बनर्जी, रविशंकर, विलायत खान, एन. राजम और बिस्मिल्लाह खान को सुनते हुए घंटों सुखद तरीके से गुजर जाते थे और जब मैं गायन सुनना चाहता था, तब भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, मल्लिकार्जुन मंसूर, मालिनी राजुरकर, किशोरी अमोनकर, और बसवराज राजगुरु को सुन सकता था।

यूट्यूब से दीवानगी की शुरूआत हुई जनवरी, 2018 के दूसरे पखवाड़े से। यह महान सरोदिया बुद्धदेव दासगुप्ता के निधन के समाचार से प्रेरित थी। कलकत्ता में 1980 के दशक में एक विद्यार्थी के रूप में मैंने अक्सर दासगुप्ता की लाइव प्रस्तुति सुनी। इंजीनियरिंग के पूर्णकालिक पेशे से जुड़े होने के कारण वह अपने समकालीनों अली अकबर खान और अमजद अली खान की तरह पूरे भारत और पश्चिम जगत के कंसर्ट सर्किट से नहीं जुड़ सके और वह प्राय: अपने शहर में ही प्रस्तुति देते थे। मेरे युवा दिनों की उनके कंसर्ट से जुड़ी स्मृतियों को मैंने सहेज रखा था, इसलिए जब 2010 के आसपास बुद्धदेव बाबू बंगलूरू आए, तो मैं अपने बेटे को भी उन्हें सुनने के लिए ले गया था। उस समय उस्ताद उम्रदराज दिखने लगे थे और इसका एहसास उन्हें भी था। चौदिया मेमोरियल हॉल में कंसर्ट शुरू करते हुए उन्होंने श्रोताओं से कहा, यह वह बुद्धदेव दासगुप्ता नहीं है, जिसे आप जानते थे, लेकिन बंगलूरू से निमंत्रण मिलने के कारण मैं खुद को यहां आने से रोक नहीं सका।

बुद्धदेव दासगुप्ता का 15 जनवरी, 2018 को निधन हो गया और तब उनके 85वें जन्मदिन को कुछ हफ्ते रह गए थे। उनके निधन का समाचार सुनते ही मैंने एक बार फिर अपने आईपॉड पर उनकी गोरख कल्याण और जैजैवंती की रिकॉर्डिंग सुनी। इसके बाद मैंने अपने कैसेट के संग्रह से उनका 1980 के दशक का नेशनल प्रोग्राम से जुड़ा कैसेट ढूंढ़ निकाला, जिसमें वह जादुई ढंग से प्रस्तुति दे रहे थे। मैं यह सब पहले कई बार सुन चुका था। यूट्यूब में निजी कंसर्ट की दुर्लभ रिकॉडर््ंिस पहले से उपलब्ध थीं और उनकी मौत के बाद के हफ्तों में उनके प्रशसकों ने और भी सामग्री अपलोड कर दीं। इनमें राग छाया बिहाग की एक घंटे लंबी दुर्लभ प्रस्तुति भी थी, जिसे मैं उसके बाद से बार-बार सुनता रहा हूं।

महामारी के आने के बाद से मैंने खुद को यूट्यूब में उपलब्ध सामग्री के जरिये व्यस्त रखा। इनमें से कुछ क्रिकेट से जुड़ी हुई हैं— मैं खासतौर से शेन वार्न और माइकल एथर्टन की शानदार बातचीत को सुनने का सुझाव दूंगा— जबकि कुछ साहित्य से— जिसमें मैं सी एल आर जेम्स और स्टुअर्ट हाल की बातचीत को सुनने का सुझाव दूंगा। हालांकि अधिकांश संगीत से जुड़ी हुई हैं। यूटयूब की मेरी हाल की खोज है किराना घराने की महान गायिका रोशन आरा बेगम की रिकॉर्डिंग। उस्ताद अब्दुल करीम खान की यह शिष्या विभाजन के बाद लाहौर चली गई थीं और वहां 1982 में अपनी मौत से पहले तक प्रस्तुतियां देती रहीं। 2009 में मैं लाहौर में था और वहां रोशन आरा का संगीत तलाशते मैं अनारकली बाजार गया था। मुझे उनके कुछ कैसेट्स मिले जिनमें राग शंकरा का एक शानदार गायन शामिल था, जिसे मैं तबसे अनगिनत बार सुन चुका हूं। पिछले हफ्ते मुझे 1950 के दशक के आखिर में दिल्ली में हुए एक कंसर्ट की रिकॉर्डिंग मिली जो कि दुर्लभ राग नूरानी पर केंद्रित था। विशेष आनंद की बात थी सुरजीत सेन की आवाज : ‘यह आॅल इंडिया रेडियो है। संगीत के राष्ट्रीय कार्यकम में आज आप सुनेंगे पाकिस्तान की रोशन आरा बेगम का गायन।’

पिछले कई वर्षों से मैं यूट्यूब पर संगीत सुन रहा हूं और मैं उन लोगों की सराहना करता हूं जो दूसरों के सुनने के लिए नि:स्वार्थ भाव से इसमें अपने निजी संग्रह साझा कर रहे हैं। मैं उनके नाम का जिक्र करना चाहूंगा, लेकिन मैं नहीं चाहता कि संकीर्ण एकाधिकारवादी और उनके लालची वकील उन्हें परेशान करने लगें। कोई भी यूट्यूब पर उन्हें सुनकर मेरी भावनाओं और कृतज्ञता से साझा करेगा और समझ जाएगा कि मेरा क्या आशय है। नफरत और कलह, ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता, गर्व और पूर्वाग्रह से त्रस्त दुनिया में, जो लोग अपने श्रमसाध्य संगीत के खजाने को सार्वजनिक मंच पर रखते हैं, वे मानव जाति के सच्चे रत्न हैं।