राष्ट्रनायक न्यूज।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की स्वीकृति के एक वर्ष के अंदर ही आठ राज्यों के कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों में भारतीय भाषाओं में अध्यापन प्रारंभ होना भारतीय इतिहास की युगांतकारी घटना है, जो सही संदर्भों में मैकाले को खारिज करते हुए भारत के लोगों के लिए देश की जुबान में शिक्षा हो इसका पथ प्रदर्शित करती है। औपनिवेशीकरण की पूरी प्रक्रिया में भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिक्षा के भारतीयकरण का अभियान भी भाषा के माध्यम से ही होगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस प्रकार के दृढ़ विश्वास का प्रतिपादन है। आजादी के बाद भारत में शिक्षा के तंत्र और प्रक्रिया को राष्ट्रीय अपेक्षाओं के अनुकूल करने की चुनौती थी। इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर प्रयत्न भी आरंभ हुए।
राधाकृष्णन आयोग, मुदालियर आयोग और कोठारी आयोग जैसे तीन आयोग बने। इन आयोगों की सिफारिशों ने स्वतंत्र भारत में शिक्षा की नींव रखी। कोठारी आयोग की रिपोर्ट (1964-66) और शिक्षा नीति (1986) स्वतंत्र भारत में शिक्षा के सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल थी। भारत की पहली शिक्षा नीति अमूर्त थी। इसमें स्वतंत्र राष्ट्र की अपेक्षाओं को साकार करने, शिक्षा को मूल्यपरक बनाने और भारतीय संस्कृति से जोड़ने पर बल था, लेकिन क्रियान्वयन की कोई योजना नहीं थी। इसके परिणामस्वरूप औपचारिक शिक्षा की संरचनाओं में बदलाव हुए, लेकिन क्रियान्वयन योजना के अभाव में अन्य परिकल्पित लक्ष्यों के संदर्भ में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई। मैं नीति की मंशा पर प्रश्न नहीं खड़ा कर रहा हूं।
नि:संदेह मंशा अच्छी थी, किंतु उसे कार्यरूप देने में समस्याएं आईं। वर्ष 1986 की शिक्षा नीति ‘यूरोसेंट्रिक’ थी। इसमें भारतीय जीवन और भारतीय समाज का कोई आकलन किए बिना, यूरोप से आ रही हवा का अनुकरण करने की कोशिश की गई थी। स्वतंत्र भारत में बहुभाषिकता को बढ़ावा देने के लिए त्रिभाषा-सूत्र लाया गया। इसका उद्देश्य था कि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त दो और भाषाओं में समझ विकसित कर सके। यद्यपि यह सूत्र भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन के लिए था, लेकिन इसका क्रियान्वयन इस तरह से हुआ कि यह संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा की स्वीकार्यता और अनिवार्यता का सूत्र बन गया। इस सूत्र का आग्रह था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो। इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं में पढ़ने-लिखने की संस्कृति के विकास की संभावना थी। दुर्भाग्य से इसकी व्याख्या और अनुपालन इस तरह से हुआ कि देश भर में भाषिक दृष्टि से दोहरी शिक्षा प्रणाली विकसित हुई। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के त्रिभाषा सूत्र को भाषा-नीति और अनुवाद-नीति के साथ-साथ भाषा प्रौद्योगिकी की दृष्टि से भी देखने की जरूरत है।
शिक्षण, शोध, अनुसंधान, काम-काज और संप्रेषण की भाषा के विकल्प के रूप में हिंदी को मजबूत करने का कार्य भाषा-प्रौद्योगिकी के द्वारा होगा। ऐसे ही यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान नीति, भाषा के साथ कला की बात कर रही है। इसमें भाषा के द्वारा कला और सांस्कृतिक संवर्धन का लक्ष्य है। यह लक्ष्य स्वाभाविक भी है, क्योंकि सांस्कृतिक बोध मातृभाषा में ही संभव है और जब भारतीय भाषाएं विकसित होती हैं तो संस्कृति भी विकसित हो जाती है। भारतीय भाषाओं के बढ़ने के साथ, सांस्कृतिक बोध के बढ़ने के साथ इस देश के लोगों में एकत्व का भाव दृढ़तर होगा।
हिंदी आने वाले दिनों में इस देश की राष्ट्रीय भाषा के रूप में विकसित होगी। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया होगी जिसमें किसी राजनीतिक प्रतिरोध के लिए कोई स्थान नहीं होगा। यह व्यक्ति की आवश्यकता, उसके समूह की आवश्यकता, उसके परिवेश की आवश्यकता और उसके राष्ट्र की आवश्यकता को पोषित करेगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आधार पर हमें हिंदी और भारतीय भाषाओं का विकास करते हुए भारतीय परिप्रेक्ष्य का ध्यान रखना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय परंपरा के सातत्य में है और वर्तमान की समस्याओं का मूल्यांकन करते हुए भविष्य की चुनौतियों का दिग्दर्शन कराती है। -महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति


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