कानपुर, (एजेंसी)। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे के 36 साल बीत चुके हैं। इसी से संबंधित एक मामले की जांच कानपुर की एसआईटी कर रही है। इसी बीच एसआईटी को कुछ अहम सुराग मिले हैं। दरअसल, पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी थी लेकिन फिर उन्हें कुछ सुराग मिल गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एसआईटी को डभौली इलाके से दो पीड़ितों के मानव अवशेष मिले हैं। टीम ने मंगलवार को घटनास्थल का दौरा किया था। एसआईटी एसएसपी बालेंदु भूषण सिंह के मुताबिक 1 नवंबर 1984 को डभौली के एल ब्लॉक में मकान नंबर 28 पर दंगाइयों ने हमला किया था। व्यापारी तेज प्रताप सिंह और उनके बेटे सत्यवीर सिंह की हत्या करने के बाद उनके शवों को आग के हवाले कर दिया गया था। इस संबंध में गोविंद नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर मामला बंद कर दिया था।
अंग्रेजी समाचार पत्र ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ के मुताबिक एक अधिकारी ने बताया कि अब जब एसआईटी ने जांच शुरू की तो एक के बाद एक सबूत सामने आ रहे हैं। क्राइम सीन से छेड़छाड़ नहीं की गई। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक पीड़त परिवार के दिल्ली रवाना हो जाने बाद घर को बेच दिया गया और नए मालिकों को फर्स्ट फ्लोर पर रखा गया ताकि हत्या वाले स्थान को बंद रखा जा सके और वहां पर किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न हो। एसएसपी ने बताया कि फॉरेंसिक टीम मंगलवार को जब सबूत जुटाने के लिए घटनास्थल पर पहुंची तो उन्हें वहां पर खून के धब्बे मिले। इसके अलावा भी कई अहम सुराग एकत्रित किए। उन्होंने बताया कि इस मामले से जुड़े कोई भी दस्तावेज नहीं मिले थे इसलिए पहले इसकी जांच नहीं की गई थी। जब इंस्पेक्टर सुनील अवस्थी और कमलेश कुमार अन्य मामलों की जांच के सिलसिले में दिल्ली गए थे तो वहां पर उन्होंने सत्यवीर सिंह के बेटे चरणजीत सिंह से मुलाकात की थी। इस दौरान चरणजीत सिंह ने पुलिस अधिकारियों को पूरी आपबीती सुनाई और एफआईआर की कॉपी दी। आपको बता दें कि 61 साल के चरणजीत सिंह इस घटना के चश्मदीद गवाह हैं।


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