लेखक:- अहमद अली
” जिस कानून का इस्तेमाल अपने देशवासियों की आवाज़ दबाने के लिये अंग्रेज किया करते थे, उसी का इस्तेमाल भारत की सरकार क्यों कर रही है “। ये है सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन बी रमन्ना की टिप्पणी, जो देशद्रोह जैसे काले कानून पर रोक लगाने के दौरान की है। कोर्ट ने देशद्रोह के प्रोविजंस पर केंद्र को पुनर्विचार की इजाजत देते हुए तत्काल इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक सरकार देशद्रोह कानूनों पर पुनर्विचार कर रही है, तब तक सेक्शन 124A के तहत न तो कोई नया केस दर्ज किया जाएगा और न ही इसके तहत कोई जांच होगी। इस धारा के तहत जो विभिन्न जेलों में बन्द हैं, उन्हें जमानत याचिका दायर करने की भी एजाज़त मिल गयी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश अपने आप में अजी़म स्थान का हकदार है।
खास करके 2014 के बाद अँग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रदत इस कानून का बडे़ पैमाने पर दुरुपयोग हुआ। विरोध की आवाज दबाने, गलत पर पर्दापोशी यहाँ तक कि लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलने तक के लिये भी, सत्ता द्वारा अंधाधुंध इसको एक हथियार के रुप में इस्तेमाल किया गया। यह कानून अँग्रेजों ने 1870 में बनाई थी। प्रथम जंगे आजादी(1857) के बाद जब गुलामी के विरुद्ध संघर्ष नये सिरे से आरम्भ हो गयी थी।सत्ता के विरुद्ध आवाज को कुचलने के लिये ही इसे बनाया गया था।
IPC के धारा 124A में देश द्रोह की परिभाषा इस प्रकार है; यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्हों या संविधान का अपमान या उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करता है या सरकार विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है तो उसके खिलाफ IPC सेक्शन 124A के तहत देशद्रोह का केस दर्ज हो सकता है। इसके अलावा ऐसा कोई भाषण या अभिव्यक्ति जो देश में सरकार के खिलाफ घृणा, उत्तेजना या असंतोष भड़काने का प्रयास करता है, वह भी देशद्रोह में आता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति का संबंध ऐसी संगठन से हो जो देश विरोधियों है ।किसी भी प्रकार से उसे सहयोग करता है तो वह व्यक्ति भी देश द्रोही के श्रेणी में माना जायेगा और उस पर भी 124A के तहत मुकदमा दर्ज किया जा साकता है।
यह गैर जमानती अपराध के दायरे में आता है। दोष सिद्ध होने पर दोषी को 3 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। वह व्यक्ति सरकारी नौकरी के नाकाबिल माना जायेगा और विदेश जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा ।उसका पासपोर्ट जप्त कर लिया जायेगा ।
आइये ज़रा इतिहास पर नज़र दौराई जाय।1870 में इसकी ड्राफटिंग थामस मैकाले ने किया था जो अँग्रेजी शिक्षा पद्धति का प्रतिपादक था।इस कानून के तहत 1897 में सबसे पहले बालगंगाधर तिलक पर मुकदमा दर्ज किया गया था।पीडि़तों में गाँधी जी के अलावे उस जमाने के कई पत्रकार , बुद्धिजीवी एवं स्वतन्त्रता सेनानी शामिल थे।
देशद्रोह धारा के तहत अभी लगभग 3000 मुकदमें चल रहे हैं।कुछ चर्चित शख्सियत इस प्रकार हैं, गौतम नौलखा पत्रकार, शोभा सेनक्ष, उमर खालिद,शरजील इमाम,कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल,सिद्दीकी कप्पन,अमीस त्रिवेदी,रवि दिशा। इनके अलावा सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनैतिक कार्यकर्ताओं,कवि, सोशल मिडिया अक्टिविस्टआदि की लम्बी फिहरिस्त है।
रोक के बाद, अभी कई कानूनी प्रक्रियाएं गुजरेगी।वर्तमान सरकार का एतराज तो आना शुरु हो गया है।जो भी हो, सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक कदम से लोकतांत्रिक पद्धति में यकीन रखने वाले, कौमी एकता के पक्षधर,प्रगतिशील लेखक, कवि, पत्रकार बुद्धिजीवी , सामाजिक- राजनैतिक कारकुन आदि के हृदय में कोर्ट के प्रति विश्वास और सम्मान का नये सिरे से संचार स्वभाविक है।
( लेखक के अपने विचार हैं।)
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