न्यायपूर्ण और एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष सन्यासी स्वामी अग्निवेश
लेखक: अहमद अली
ऐसे तो दुनिया में आना और फिर जाना त्रिकाल सत्य है। लेकिन किसी-किसी का जाना असमयिक सा महसूस होने लगता है। दरअसल उनकी कृति ही कुछ ऐसी होती है कि लोग दातों तले उंगलियाँ दबाने को मजबूर हो जाते हैं। जी हाँ मैं स्वामी अग्निवेश के संदर्भ में ही ये सब कह रहा हूँ। ऐसे उनसे हमारी कभी मुलाकात नहीं है और ना हीं उनको कभी सुनने का मौका ही हाथ लगा। हाँ, यदा-कदा उनके बारे में जानने या इलैक्ट्रानिक माध्यमों से उनको सुनने का अवसर प्राप्त होता रहता था। उन पर झारखंड में जब हमला हुआ, मेरी रुचि ने गहराई में उतरने की ठान ली और उनके बारे में सांगोपांग जानने की कोशिश मैने शुरु किया। मैने पाया कि उनके व्यक्तित्व के दो पहलू हैं। एक तो उनका सन्यासी होना जो अध्यामिक पृष्ठभूमि को समेटता है, और दूसरा उनके सामाजिक एंव राजनैतिक कार्य। फिर उनकी बेबाकीपन जो निडरता और साहस से लबरेज था। और यही वजह है कि इनके आलोचकों की भी एक बडी़ जमात थी।
छत्तीसगढ़ के मूल निवासी स्वामी अग्निवेश आम नौजवानों की भाँति स्कूल और कालेजों में शैक्षणिक जीवन भी बिताया। कानून और मैनेजमेंट की डिग्री हासिल किया। कोलकता के सेंट जेवियर कालेज में अध्यापक हुए। कुछ दिन वकालत भी की, लेकिन उन्हें ऐसी जिन्दगी रास न आयी और 1970 में आर्य समाज को अपना कर सन्यासी जीवन आरम्भ कर दिया। लेकिन गेरुआ वस्त्र धारण किये हुए कई सन्यासियों को जो हम आप जानते हैं, वो ऐसा नहीं थे। असल में सन्यास को उन्होंने नये तरीका से परिभाषित किया। उनका सन्यास गृह त्याग, एकांत, एकांगी, कट्टरता और मौन धारण से परे समाज और राजनीति के उच्च मानदंडों के प्रति समर्पित था। अपने आदर्शों को अमली जामा पहनाने हेतु 1968 में आर्य सभा नामक एक राजनैतिक पार्टी भी बनाई और बंधुआ मजदूरों की मुक्ति संग्राम का शंख नाद किया। इस आन्दोलन ने सरकारी तंत्र पर काफी प्रभाव डाला। जिसके चलते सरकार को कई महत्वपूर्ण कदम उठाने पडें। 1977 में तत्कालीन हरियाणा सरकार में उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया। लेकिन उस सरकार का मजदूरों के प्रति रवैया ने उन्हें विद्रोही बना डाला। मजदूरों के आन्दोलन पर लाठी चार्ज का विरोध करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे कर स्वयं आन्दोलन में शामिल हो गये। दो बार उनकी गिरफ्तारी भी हुई। 14 दिन जेल में भी रहे। कई यातनाएँ दी गयी, फिर भी वो अडे़ रहे कभी भी झुके नहीं।
स्वामी अग्निवेश समाज में फैली कुरितियो, अंधविश्वास, आडम्बर और धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध सतत संघर्ष करने वाले एक योद्धा ही नहीं बल्कि एक मुखर आवाज की पहचान बन गये थे। और इसीलिये धर्मांध व्रिगेडियर के हमेशा आँख की किरकीरी बने हुए थे। धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता, कौमी एकता, सामाजिक न्याय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के न केवल वो पक्के और सच्चे पैरोकार थे, बल्कि हर अभियान और आन्दोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी भी देखने को मिलती थी। देश के किसी भी कोने में घटित मौब लिंचिंग की घटना या कमजोर तब्के पर किसी भी प्रकार का जुल्म उन्हें उद्वेलित कर देता था और उसके विरोध में निकल पड़ते थे। जे पी आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, अन्ना हजारे का सत्याग्रह, 1996 के सुचना का अधिकार का आन्दोलन यहाँ तक कि असम का छात्र आन्दोलन अर्थात् हर वो आन्दोलन, जिससे देश के लोकतंत्र की नींव मजबूत होती हो, उनका वो सिर्फ समर्थन ही नहीं उसमें सहयोग ओर सहभागिता भी उनकी रहती थी। पिछले वर्ष राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उन्होंने आडे़ हाथों लेते हुए तल्ख टिपन्नी भी की थी। जिससे भाजपा परिवार तिलमिला उठा था। लेकिन समय ने उनकी बातों को सही साबित किया।
दलितों और आदिवासियों के अधिकार का सवाल हो या महिला सम्मान का प्रश्न स्वामी जी के संघर्ष के कदम कभी रुके नहीं। 1987 में सती प्रथा के विरोध में दिल्ली से देवराला तक उन्होंने पद यात्रा किया था। लेकिन उन्हें बीच ही में रोक कर बन्दी बना लिया गया था। 80 के दशक में दलितों को मंदिर में प्रवेश के लिये आन्दोलन भी चलाया था।
कालान्तर में उनपर कई हमले हुए, लेकिन 17 जुलाई 2018 को झारखंड के पाकुड़ जिले में जो उनपर हमला हुआ वही उनकी मौत का कारण बना। उस दिन पाकुड़ में पहाडि़या आदिवासियों द्वारा आयोजित दामिन दिवस के कार्यक्रम को सम्बोधित करने जा रहे थे। भाजपा-आर.एस.एस. से जुड़े छात्र-नौजवानों ने उन पर हमला कर दिया। बीच सड़क पर उनकी बुरी तरह पीटाई की गई, उनके कपडे़ फाड़ डाले गये, पगड़ी उछाल दी गयी। इसी हमले में उनका लिवर क्षातिग्रस्त हो गया और 80 वर्ष के आयु में 11 सितम्बर 2020 को लीवर सिरोसिस के चलते उनका देहान्त हो गया।
आज राजनीतिक मुल्यों के पतनशील दौर में स्वामी अग्निवेश का संघर्ष और बलिदान राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिये प्रेरणा श्रोत बना रहेगा। क्या वो कुछ सीखेगे उनसे जिनके शरीर पर तो गेरुआ वस्त्र है, लेकिन कार्य अमानवीय।
लेखक के अपने विचार है।
cpmahamadali@gmail.com
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