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अलविदा रामविलास: अंतिम यात्रा में 10 किलोमीटर से अधिक लगी लाइन, यात्रा में सबकी आंखे हुई नम, रामविलास अमरे रहे के नारों से गूंजा पटना

अलविदा रामविलास: अंतिम यात्रा में 10 किलोमीटर से अधिक लगी लाइन, यात्रा में सबकी आंखे हुई नम, रामविलास अमरे रहे के नारों से गूंजा पटना

पटना। देश में दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले रामविलास पासवान की अंतिम यात्रा शनिवार की दोपहर शुरू हुई। जब एसके पुरी स्थित उनके आवास से अंतिम विदाई हो रही थी तो हजारों की भीड़ थी, लेकिन उसमें आवाज नहीं थी, क्योंकि उनकी आवाज रामविलास पासवान हमेशा के लिए चुप हो गये थे। रामविलास पासवान की आवाज दलितों की वो आवाज कही जाती थी जो सड़क से लेकर संसद तक गूंजती थी। विधायक से लेकर सांसद और फिर केन्दीय मंत्री तक के अपने सफर में रामविलास पासवान ने कभी अपनी पहचान को नहीं छोड़ा ना कभी उसे  बदलने की कोशिश की। उनके इसी अंजाज का असर था क 1977 में इंदिरा गांधी द्वारा हाजीपुर में उनके खिलाफ चुनाव प्रचार के बाद भी रामिवलास ने रिकॉर्ड मताें से लोकसभा का वह चुनाव जीता। इस जीत को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया। रामविलास पासवान की इस जीत ने देश की राजनीति को समझ का दावा करने वाले राजनीतिक विशेषज्ञों और नेताओं को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब राजनीति में बदलाव की बयार बह चुकी है। अब नेता बनने की बारी मंच पर चमकने वाले चेहरों की नहीं, बल्कि भीड़ का हिस्सा बनने वाले नेताओं की है।

रामविलास पासवान की अंतिम यात्रा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और इसी के साथ भीड़ में मौजूद हर शख्स की उनसे जुड़ी यादें ताजा हो रही थी। दलितों के सामाजिक संघर्ष को समझाते हुए एकबार रामविलास पासवान ने कहा था कि मै जानता हूं मेरे पिताजी को अगर कोई एक लमाचा लगा देता या बैठने के लिए जगह ना देता तो खून का घूंट पीकर रह जाते, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अगर ऐसा कुछ होता है तों हम इसके खिलाफ कुछ भी करेंगे। शव यात्रा से पटना की व्यस्त सड़क आज थम सी गई है। अपने उस नेता के लिए जिसने मिट्‌टी के घर से सफेद मार्बल से सजे महलनुमा घर में बैठे राजनीति के महारथियों को अपने दलित  समाज की आवाज सुनने पर मजबूर कर  दिया था। सड़क के दोनों किनारों पर भीड़ थी। रामविलास पासवान के अंतिम दर्शन के लिए जुटी भीड़ में किसी की कोई जाति नहीं थी। कुछ लोग घरों की छत से देख रहे थे तो कुछ अपनी छोटी बालकनी से। जैसे-जैसे अंतिम यात्रा बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे इसमें लोगों की तादाद भी बढ़ती जा रही थी। रामविलास अमर रहे के नारों की गूंज गाड़ियों से निकलने वाले हार्न को दबा रही थी। लगभग 10 किलोमीटर लंबी अंतिम यात्रा में सड़कों के दोनों तरफ की भीड़ खत्म नहीं हो रही थी। इस भीड़ में आम चेहरों के बीच कई खास चेहरें भी शामिल थे।

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