बिहार विधानसभा चुनावी समर में निधन से उत्तरी बिहार में लोजपा को मिल सकती है सहानुभूति
पटना। लोक जनशक्ति पार्टी यानी लोजपा के संस्थापक और केन्द्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान के निधन बिहार विधानसभा आम चुनाव के बीच समर में हुआ है। रामविलास के निधन के उपरान्त उनके राजनीतिक विरासत संभाल रहे चिराग पासवान और लोजपा के कार्यकर्ता काफी मायूस है। बिहार विधान सभा के चुनावी मझधार में फंसे लोजपा के नेता और कार्यकर्ताओं को इस बात की चिंता सता रही है कि पहली बार उनके नेता चुनाव के वक्त मौजूद नही है। ऐसे में उनकी चुनावी नैया कैसे पार लगेगी। लेकिन इसके उलट पासवान के नहीं रहने पर सहानुभूति का लाभ लोजपा को मिल भी सकता है। बिहार के राजनीतिक जानकारों की माने तो खगड़िया जहां लोजपा का पैतृक जिला है और पहली बार 1969 में उन्होनें अलौली विधान सभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। वहीं हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र जहां से पहली बार लोकसभा चुनाव रिकार्ड मतो से जीता था। आज वहां से उनके मझले भाई पशुपति कुमार पारस सांसद है। जबकि समस्तीपुर से उनके छोटे भाई स्व.
रामचन्द्र सांसद रह चुके है और अब उनके बेटे प्रिंस राज सांसद है। वही रामविलास पासवान के बेटे और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान जमुई से सांसद है। यानि ये चारो लोकसभा क्षेत्र सुरक्षित है और यहां दलितो की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है। ऐसे में यह संभावना जतायी जा रही है कि यहां के मतदाताओं को सहानुभूति का लाभ लोजपा को आगामी चुनाव में मिल सकता है। इसके अलावे नालंदा, गोपालगंज, गया जैसे जिलो में दलितो का रूख इस बार लोजपा के तरफ हो तो कोई आश्चर्य नही होगी। फिलहाल इतना जरूर कह सकते है कि रामविलास पासवान के निधन से लोजपा को भारी क्षति तो हुई है, लेकिन इसकी भरपाई अगर वह जनता कर दे जिसके घर में दिया जलाने का काम रामविलास ने जीवन भर किया है तो कोई आश्चर्य नही होगी।


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