जबरिया रिटायर्ड केबिहार सरकार की तुगलकी फरमान के खिलाफ आंदोलन होगा तेज: श्रमिक संगठन
- बजट 2021-22 किसान-मजदूर विरोधी, कम्पनी राज को बढ़ावा: डॉ उमेश
- मजदूरों को गुलाम बनाने वाला है 4 श्रम कोड बिल: फूल झा
दरभंगा। अंबानी-अडानी कंपनी राज से मुक्त करने,भारत को विनाशकारी मोदिशाही के चंगुल से मुक्त करने, मजदूरों की गुलामी के 4 श्रम कोडों को रद्द करने, 3 कृषि कानूनों को रद्द करने,12 घंटे का कार्य-दिवस वापस लेने, बजट 2021 में सभी मजदूरों को समुचित लॉकडाउन राहत देने, असंगठित मजदूरों को न्यूनतम कॉर्डिनेशन आॅफ केन्द्रीय ट्रेड यूनियन और स्वतंत्र फेडरेशन के राष्ट्रीय आहवान पर दरभंगा क्लब से प्रतिरोध मार्च निकलकर कमिशनरी, समाहरणालय होते हुए लहेरियासराय टावर पहुंच कर पुन: समाहरणालय मुख्यद्वार पर पहुंचा और मजदूर विरोधी सभी कानून की प्रतियां को स्वाहा किया गया। मार्च का नेतृत्व ऐक्टू के जिला सचिव मिथलेश्वर सिंह, बिहार राज्य अराज्यपत्रित महासंघ के जिला मंत्री फूल कुमार झा, बिहार राज्य निर्माण मजदूर यूनियन के सत्यनारायण पासवान उर्फ भोला जी, सीटू के सत्यप्रकाश चौधरी, कर रहे थे। इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि विनाशकारी कृषि कानून न केवल किसानों व किसानी को तबाह कर देंगे, बल्कि आम जनता को दाने-दाने का मोहताज बना देंगे – खासकर असंगठित मजदूरों, मजदूरों की आगामी पीढ़ियों और गरीब अवाम को खाद्य सुरक्षा से भी वंचित कर देंगे क्योंकि खाने की वस्तुओं को बाजार और जमाखोरी के हवाले कर दिया जायेगा, राशन व पीडीएस प्रणाली समाप्त कर दी जाएगी। देश के मजदूरों को इन्हीं पूंजीपति घरानों, मालिक वर्ग का गुलाम बनाने के लिये मोदी सरकार ने 4 श्रम कानून (कोड) बना दिये हैं. मालिकों और पूंजी की गुलामी से खुद को बचाने के लिये देश के मजदूर वर्ग ने ब्रिटिश शासन के समय से ही लंबे संघर्षों और कुर्बानियों के जरिये कई श्रम कानून व अधिकार हासिल किये थे, जिन्हें मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है. केंद्रीय स्तर पर 44 श्रम कानूनों और कई राज्य कानूनों को खत्म कर 4 ऐसे श्रम कोड बना दिये गये हैं जो मजदूरों को पूरी तरह से मालिकों के रहमो-करम पर छोड़ देंगे. 12 घंटे का कार्य-दिवस देशभर में आम बनता जा रहा है और इसे कई, खासकर भाजपा शासित राज्यों ने कानूनी बना दिया है. जहां, इन सभी कृषि और श्रम-कोड कानूनों को लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए संसद में बिना किसी बहस और वोटिंग के कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार ने पास कर दिया, वहीं श्रम कानूनों को बनाने की प्रक्रिया में ट्रेड यूनियन संगठनों ने जो कोई भी मजदूर-पक्षीय सुझाव दिये उन्हें रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया गया. यही असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ह्यमहामारी के संकट को अवसर मे बदलनेह्ण के मंत्र का शर्मनाक सच है – किसानों की जमीन छीनना और लॉकडाउन की मार से पीड़ित मजदूरों को मालिकों की गुलामी में धकेलना, ताकि कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे के अंबार बढ़ते जाएं. जब मजदूर लॉकडाउन के चलते दर-दर की ठोकरें खा रहे थे, मुकेश अंबानी हर घंटे के 90 करोड़ रुपए कमा रहा था. कुल मिलाकर ये कृषि कानून और श्रम कोड फांसी का फंदा है जिससे किसानों और मजदूरों को खुद को मुक्त करने के आंदोलन को तेज करने का आहवान किया। सभा को देवेन्द्र कुमार, मो वाहिद, बैंकर्स यूनियन के कैसर आलम, सुरेन्द्र नारायण मिश्र, कर्मचारी नेता अरविंद प्रसाद राय, फकीरा पासवान, ताराकांत पाठक आदि ने सम्बोधित किया।


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