दिल्ली, एजेंसी। एक देश एक टैक्स का नियम जब तत्कालीन वित्त मंत्री श्री अरुण जेतली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लंबी मंत्रणा ?के बाद लागू करने का ऐलान किया था तो उद्देश्य स्पष्ट था कि राज्यों और केंद्र सरकार के बीच न केवल टैक्सों को लेकर बल्कि हर दृिष्टकोण में तालमेल रहना चाहिए। दुनियाभर के वित्त विशेषज्ञों और अर्थशा?स्त्रियों ने इसका स्वागत किया था। भारतीय इकोनोमी का स्वरूप मिश्रित है तथा पूरे देश में एक समान टैक्स प्रणाली को समझने ओर लागू करने में लंबा वक्त लगा। परिणाम बहुत अच्छे आ रहे हैं। श्री अरुण जेतली आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन अर्थव्यवस्था को लेकर वह बहुत संवेदनशील थे और राज्यों तथा केंद्र के बीच रिश्तों की मजबूती को उन्होंने वित्तीय दृष्टिकोण से समझा और एक-दूसरे के पूरक बनने की जो कल्पना की थी वह आज सच हुई।
किसी चीज का परिणाम तुरंत नहीं मिलता अर्थव्यवस्था का स्वरूप भी लांग टर्म अर्थात दीर्घकाल पर टिका है। वित्त मंत्रालय बराबर कारोबारियों से उनके व्यापार को लेकर फीडबैक लेता रहता है तथा पूरी निगाह रखता है कि सभी राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति का हिस्सा मिलता रहे। कोरोना ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। लेकिन श्रीमती निर्मला सीतारमण ने अपने महकमे में उसी विचारधारा को आगे बढ़ाया जो जीएसटी क्रांतिकारी अध्याय के रूप में लिखी गई थी। राज्यों को आज क्षतिपूर्ति का हिस्सा नियमित रूप से मिला रहा है। तुरंत किसी परिणाम की आशा करने वाले लोग संभवत: आलोचना कर सकते हैं लेकिन मोदी सरकार की यह विशेषता है कि यह स्वस्थ आलोचनाओं को स्वीकार करती है। राष्ट्र हित में जो होता है उसे आगे बढ़ाती है। फसल बोने से लेकर पकने तक एक लंबी प्रक्रिया है। तब कहीं जाकर परिणाम मिलता है।
सरकार ने जीएसटी की क्षतिपूर्ति की राशि सभी राज्यों तक पहुंचाने का काम पूरी पारदर्शिता के साथ कर रखा है अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो वित्त मंत्रालय ने पिछले साल अक्तूबर से लेकर फरवरी तक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को इसी क्षतिपूर्ति के तहत एक लाख करोड़ रुपए जारी किए हैं। यह सब सरकार की नी?ित के तहत जारी किए जा रहे हैं। ना केवल वित्त मंत्री बल्कि खुद प्रधानमंत्री इसकी पूरी जानकारी रखते हैं। वित्त मंत्रालय ने 23 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों को जब पिछले दिनों 17वीं किस्त के रूप में पांच-पांच हजार करोड़ रुपए जारी किए तो वित्त विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार की
नीतियां सही दिशा में हैं। अगर अब तक पुरानी किस्तों में दी गई जीएसटी क्षतिपूर्ति की राशि गिनी जाए तो अब यह एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। हमारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है कि उद्योग जगत को जुनून से काम करना होगा और जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं उद्योगपतियों को निवेश बढ़ाने के लिए संगठनों और सहयोगियों को प्रेरित भी करना होगा।
इस दिशा में जीएसटी काउंसिल की नियमित बैठकों से अच्छे परिणाम मिल रहे हैं और कारोबारियों को मासिक रिटर्न करने के मौके तो हैं ही लेकिन उन्हें इसके लिए विकल्प दिया गया है। उन्हें चयन बदलने का अधिकार हर तिमाही के बाद दिया गया है। और इसी के तहत सरकार ने चार तिमाहियां सैट की हैं। इस दृष्टिकोण से मासिक रिटर्न जमा करने वाले कारोबारी किसी एक तिमाही को चुनने का विकल्प रख सकते हैं इतना ही नहीं चारों तिमाहियो की तारीखें भी घोषित कर दी गई हैं। इससे सभी कारोबारियों को अब आसानी हो रही है। वरना उनका पंजीकरण खतरे में पड़ सकता था पर सरकार ने उन्हें एक विकल्प दे दिया है।
वित्त मंत्रालय अब प्राइवेट सैक्टर को भी पूरी तवज्जो दे रहा है। क्योंकि राष्ट्र की मुख्य धारा तो विकास ही है और इसी लिए बजट में निजी सैक्टर को मौका दिया गया है। बैंकिंग सिस्टम को और मजबूत किया जा रहा है। कापोर्रेट टैक्स में सरकार कटौती का लाभ भी उद्योगपतियों को इसलिए दे रही है ताकि भारत एक मजबूत इकोनोमी बन सके और उनका योगदान दिखाई दे सके। निजीकरण के मामले में आलोचना करना बहुत सरल है परन्तु मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी सूरत में निजीकरण के अर्थ को गलत प्रयोग में न लाएं। निजीकरण का सबसे बड़ा उद्देश्य यही है कि करदाता से प्राप्त राशि का खर्च एक ऐसे तरीके से किया जा सके कि सबकुछ लाभ में बदल सके। जिन चीजों की अर्थव्यवस्था में मांग है अगर प्राफैशनल कंपनियां नीतिगत तरीके से इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं तो सरकार उनकी हर मदद को तैयार है। इसी लिए चाहे पीएम मोदी हों या वित्त मंत्री सीतारमण सभी निवेश बढ़ाए जाने की जरूरत पर बल देते हैं। विनिवेश के मामले में भी सरकार स्प्ष्ट कर चुकी है कि कई सैक्टरों की पहचान कर ली गई और यह सबकुछ राष्ट्र के हित में है। कोरोना काल में प्रभावित अर्थ व्यवस्था को चलाने के लिए धन की जरूरत होती है। सामाजिक कल्याण की योजनाओं के लिए धन की जरूरत होती है। सरकार के लिए धन जुटाना भी चुनौती है। अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के संकेत मिल रहे हैं लेकिन अभी समय लगेगा।
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