राष्ट्रनायक न्यूज

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रमजान माह में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर होता है

मरहबा सद मरहबा आमदे-रमजान है
खिल उठे मुरझाए दिल, ताजा हुआ ईमान है
हम गुनाहगारों पे ये कितना बड़ा अहसान है
या खुदा तूने अता फिर कर दिया रमजान है…

राष्ट्रनायक न्यूज।

माहे-रमजान इबादत, नेकियों और रौनक का महीना है। यह हिजरी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। इस्लाम के मुताबिक अल्लाह ने अपने बंदों पर पांच चीजें फर्ज की हैं, जिनमें कलमा, नमाज, रोजा, हज और जकात शामिल हैं। रोजे का फर्ज़ अदा करने का मौका रमजान में आता है। कहा जाता है कि रमजान में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर होता है और इस महीने में इबादत करने पर 70 गुना सवाब हासिल होता है। इसी मुबारक माह में अल्लाह ने हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कु़रआन नाजिल किया था। यह भी कहा जाता है कि इस महीने में अल्लाह शैतान को कैद कर देता है।

इबादत: रमजान से पहले मस्जिदों में रंग-रोगन का काम पूरा कर लिया जाता है। मस्जिदों में शामियाने लग जाते हैं। रमजान का चांद देखने के साथ ही इशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। रमजान के महीने में जमात के साथ कियामुल्लैल (रात को नमाज पढ़ना) करने को ‘तरावीह’ कहते हैं। इसका वक्त रात में इशा की नमाज के बाद फज्र की नमाज से पहले तक है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमजान में कियामुल्लैल में बेहद दिलचस्पी ली। आपने फरमाया कि ”जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब (पुण्य) हासिल करने की नीयत से रमजान में कियामुल्लैल किया, उसके पिछले सारे गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।” उन्होंने फरमाया कि ”यह ऐसा महीना है कि इसका पहला हिस्सा अल्लाह की रहमत है, दरमियानी हिस्सा मगफिरत है और आखिरी हिस्सा जहन्नुम की आग से छुटकारा है।” रमजान के तीसरे हिस्से को अशरा भी कहा जाता है। आपने फरमाया कि ”रमजान के आखिरी अशरे की ताक (विषम) रातों में लैलतुल कद्र की तलाश करो।” लैलतुल कद्र को शबे-कद्र भी कहा जाता है। शबे-कद्र के बारे में कुरआन में कहा गया है कि यह हजार रातों से बेहतर है, यानि इस रात में इबादत करने का सवाब एक हजार रातों की इबादत के बराबर है। मुसलमान रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख को पूरी रात इबादत करते हैं।

खुशनूदी खान कहती हैं- इस महीने में कुरआन नाजिल हुआ, इसलिए रमजान बहुत खास है। हर मुसलमान के लिए यह महीना मुकद्दस और आला है। हमें इस महीने की अहमियत को समझते हुए ज्यादा से ज्यादा वक़्त इबादत में गुजारना चाहिए। वैसे भी रमजान में हर नेकी और इबादत का सवाब साल के दूसरे महीनों से ज्यादा ही मिलता है। वे कहती हैं कि शबे-कद्र को उनके खनदान के सभी लोग रातभर जागते हैं। मर्द इबादत के लिए मस्जिदों में चले जाते हैं और औरतें घर पर इबादत करती हैं। वहीं, जुबैर कहते हैं कि काम की वजह से पांचों वक़्त की नमाज नहीं हो पाती, लेकिन रमजान में उनकी कोशिश रहती है कि नमाज और रोजा कायम हो सके। दोस्तों के साथ मस्जिद में जाकर तरावीह पढ़ने की बात ही कुछ और है। इस महीने की रौनकों को देखकर कायनात की खूबसूरती का अहसास होता है। रमजान हमें नेकियां और इबादत करने का सबक देता है और हमें अल्लाह के करीब करता है।

जायका: माहे-रमजान में हर तरफ जायकेदार व्यंजनों की भरमार रहती है। रमजान का जिÞक्र लजीज व्यंजनों के बगैर मुकम्मल नहीं होता। रमजान का खास व्यंजन हैं फैनी, सेवइयां और खजला। सुबह सहरी के वक़्त फैनी को दूध में भिगोकर खाया जाता है। इसी तरह सेवइयों को दूध और मावे के साथ पकाया जाता है। फिर इसमें चीनी और सूखे मेवे मिलाकर परोसा जाता है। इसके अलावा मीठी डबल रोटी भी सहरी का एक खास व्यंजन है। खास तरह की यह मीठी डबल रोटी अमूमन रमजान में ही ज्यादा देखने को मिलती है।

इफ़्तार के पकवानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। अमूमन रोजा खजूर के साथ खोला जाता है। दिनभर के रोजे के बाद शिकंजी और तरह-तरह के शर्बत गले को तर करते हैं। फलों का चाट इफ़्तार के खाने का एक अहम हिस्सा है। ताजे फलों की चाट रोजे के बाद ताजगी का अहसास तो कराती ही है, साथ ही यह पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है। इसके अलावा जायकेदार पकौड़ियां और तले मसालेदार चने भी रोजेदारों की पसंद में शामिल हैं। खाने में बिरयानी, नहारी, कौरमा, कीमा, नरगिसी कोफ़्ते, सींक कबाब और गोश्त से बने दूसरे लजीज व्यंजन शामिल रहते हैं। इन्हें रोटी या नान के साथ खाया जाता है। रुमाली रोटी भी इनके जायके को और बढ़ा देती है। इसके अलावा बाकरखानी भी रमजान में खूब खाई जाती है। यह एक बड़े बिस्कुट जैसी होती है और इसे कोरमे के साथ खाया जाता है। बिरयानी में हैदराबादी बिरयानी और मुरादाबादी बिरयानी का जवाब नहीं। मीठे में जर्दा, शाही टुकड़े, फिरनी और हलवा-परांठा दस्तरखान की शोभा बढ़ाते हैं।

जीनत कहती हैं कि रमजान में यूं तो दिन में ज्यादा काम नहीं होता, लेकिन सहरी के वक़्त और शाम को काम बढ़ जाता है। इफ़्तार के लिए खाना तो घर में ही तैयार होता है, लेकिन रोटियों की जगह हम बाहर से नान या रुमाली रोटियां मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं। रमजान में रोटी बनाने वालों का काम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। दिल्ली में जामा मस्जिद के पास रोटी बनाने वालों की कई दुकानें हैं। यहां तरह-तरह की रोटियां बनाई जाती हैं, जैसे रुमाली रोटी, नान, बेसनी रोटी आदि। अमूमन इस इलाके के होटल वाले भी इन्हीं से रोटियां मंगाते हैं।

हदीस: जो साहिबे-हैसियत हैं, रमजान में उनके घरों में लंबे-चौड़े दस्तरख़्वान लगते हैं। इफ़्तार और सहरी में लजीज चीजें हुआ करती हैं, लेकिन जो गरीब हैं, वो इन नेअमतों से महरूम रह जाते हैं। हमें चाहिए कि हम अपने उन रिश्तेदारों और पड़ौसियों के घर भी इफ़्तार और सहरी के लिए कुछ चीजें भेजें, जिनके दस्तरख़्वान कुशादा नहीं होते। ये हमारे हुजूर हजरत मुहम्मद सल्लललाहू अलैहिवसल्लम का फरमान है।

आप (सल्लललाहू अलैहिवसल्लम) फरमाते हैं- रमजान सब्र का महीना है यानी रोजा रखने में कुछ तकलीफ हो, तो इसे बर्दाश्त करें। फिर आपने कहा कि रमजान गम बांटने का महीना है यानी गरीबों के साथ अच्छा बर्ताव किया जाए। अगर दस चीजें अपने रोजा इफ़्तार के लिए लाए हैं, तो दो-चार चीजें गरीबों के लिए भी लाएं। यानी अपने इफ़्तार और सहरी के खाने में गरीबों का भी ख़्याल रखें। अगर आपका पड़ौसी गरीब है, तो उसका खासतौर पर ख़्याल रखें कि कहीं ऐसा न हो कि हम तो खूब पेट भर कर खा रहे हैं और हमारा पड़ौसी थोड़ा खाकर सो रहा है।

खरीददारी: रमजान में बाजार की रौनक को चार चांद लग जाते हैं। रमजान में दिल्ली के मीना बाजार की रौनक के तो क्या कहने। दुकानों पर चमचमाते जरी वाले व अन्य वैरायटी के कपड़े, नक़्काशी वाले पारंपरिक बर्तन और इत्र की महक के बीच खरीददारी करती औरतें, साथ में चहकते बच्चे। रमजान में तरह-तरह का नया सामान बाजार में आने लगता है। लोग रमजान में ही ईद की खरीददारी शुरू कर देते हैं। आधी रात तक बाजार सजते हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा कपड़ों की खरीददारी होती है। दर्ज़ियों का काम बढ़ जाता है। इसलिए लोग खासकर महिलाएं ईद से पहले ही कपड़े सिलवा लेना चाहती हैं। अलविदा जुमे को भी नये कपड़े पहनकर नमाज पढ़ने का दस्तूर है। हर बार नये डिजाइनों के कपड़े बाजार में आते हैं। नेट, शिफौन, जॉरजेट पर कुन्दन वर्क, सिक्वेंस वर्क, रेशम वर्क और मोतियों का काम महिलाओं को खासा आकर्षित करता है। दिल्ली व अन्य शहरों के बाजारों में कोलकाता, सूरत और मुंबई के कपड़ों की धूम रहती है। इसके अलावा सदाबहार चिकन का काम भी खूब पसंद किया जाता है। पुरानी दिल्ली के कपड़ा व्यापारी शाकिर अली कहते हैं कि बाजार में जिस चीज का मांग बढ़ने लगती है हम उसे ही मंगवाना शुरू कर देते हैं। ईद के महीने में शादी-ब्याह भी ज्यादा होते हैं। इसलिए माहे-रमजान में शादी की शॉपिंग भी जमकर होती है। शादियों में आज भी पारंपरिक पहनावे गरारे को खासा पसंद किया जाता है।

चूड़ियों और मेहंदी के बिना ईद की खरीददारी अधूरी है। रंग-बिरंगी चूड़ियां सदियों से औरतों को लुभाती रही हैं। चूड़ियों के बगैर सिंगार पूरा नहीं होता। बाजार में तरह-तरह की चूड़ियों की बहार है, जिनमें कांच की चूड़ियां, लाख की चूड़ियां, सोने-चांदी की चूड़िया, और मेटल की चूड़ियां शामिल हैं। सोने की चूड़ियां तो अमीर तबके तक ही सीमित हैं। खास बात यह भी है कि आज भी महिलाओं को पारंपरिक कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां ही ज्यादा आकर्षित करती हैं। बाजार में कांच की नगों वाली चूड़ियों की भी खासी मांग है। कॉलेज जाने वाली लड़कियां और कामकाजी महिलाएं मेटल और प्लास्टिक की चूड़ियां ज्यादा पसंद करती हैं, क्योंकि यह कम आवाज करती हैं और टूटती भी नहीं हैं, जबकि कांच की नाजुक चूड़ियां ज्यादा दिनों तक हाथ में नहीं टिक पातीं।

इसके अलावा मस्जिदों के पास लगने वाली हाटें भी रमजान की रौनक को और बढ़ा देती हैं। इत्र, लोबान और अगरबत्तियों से महक माहौल को सुगंधित कर देती है। इत्र जन्नतुल-फिरदौस, बेला, गुलाब, चमेली और हिना का खूब पसंद किया जाता है। रमजान में मिस्वाक से दांत साफ करना सुन्नत माना जाता है, इसलिए इसकी मांग भी बढ़ जाती है। रमजान में टोपियों की बिक्री भी खूब होती है। पहले लोग लखनवी दुपल्ली टोपी ज्यादा पसंद करते थे, लेकिन अब टोपियों की नई वैरायटी पेश की जा रही हैं। अब तो लोग विभिन्न राज्यों की संस्कृतियों से सराबोर पारंपरिक टोपी भी पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा अरबी रुमाल भी खूब बिक रहे हैं। रमजान के मौके पर इस्लामी साहित्य, तकरीरों, नअत, हम्द, कव्वालियों की सीडी और डीवीडी की मांग बढ़ जाती है।

यूं तो दुनियाभर में खासकर इस्लामी देशों में रमजान बहुत अकीदत के साथ मनाया जाता है, लेकिन हिन्दुस्तान की बात ही कुछ और है। विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत में मुसलमानों के अलावा गैर मुस्लिम लोग भी रोजे रखते हैं। कंवर सिंह का कहना है कि वे पिछले कई सालों से रमजान में रोजे रखते आ रहे हैं। रमजान के दौरान वे सुबह सूरज निकलने के बाद से सूरज छुपने तक कुछ नहीं खाते। उन्हें विश्वास है कि अल्लाह उनके रोजों को जरूर कुबूल करेगा। भारत देश की यही महानता है कि यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। यही जज्बात गंगा-जमुनी तहजीब को बरकरार रखते हैं।

फिरदौस खान

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