राष्ट्रनायक न्यूज।
पटना जहानाबाद: बिहार के चर्चित सेनारी नरसंहार कांड में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। साथ ही निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया। सभी को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। 18 मार्च 1999 को वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। आरोप प्रतिबंधित एमसीसी उग्रवादियों पर लगा था। इसी मामले में पटना हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायामूर्ति अश्वनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्ताव ने सेनारी नरसंहार कांड की सुनवाई के बाद फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष यानी अभियोजन पक्ष इस कांड के आरोपियों पर लगे आरोप को साबित करने में असफल है। नरसंहार कांड के इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता और ठोस साक्ष्य पेश करने में सरकार पूरी तरह असफल रही है। निचली अदालत द्वारा 15 नवंबर 2016 को नरसंहार कांड के 11 आरोपियों को फांसी की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। सजा पाए आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।
निचली अदालत ने जिन आरोपियों को मौत की सजा दी थी, उनकी सजा को सही ठहराने के लिए सजा के फैसले और साक्ष्य समेत सभी रिकॉर्ड को पटना हाईकोर्ट भेजा था। पटना हाईकोर्ट ने मौत की सजा वाले और आजीवन कारावास के फैसले पर एक साथ सुनवाई करने के बाद शुक्रवार को फैसला दिया है। पटना हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। वहीं, आरोपियों की पहचान की प्रक्रिया सही नहीं है। अनुसंधानकर्ता पुलिस ने पहचान की प्रक्रिया नहीं की है। गवाहों ने आरोपियों की पहचान कोर्ट में की है जो पुख्ता साक्ष्य की गिनती में नहीं है। इसलिए संदेह का लाभ आरोपियों को मिलता है। इसके अलावे इस कांड के विचारण के दौरान भी सरकार यानि अभियोजन और पुलिस प्रशासन भी आरोपियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा।
तत्कालीन जहानाबाद और वर्तमान अरवल जिले के करपी थाने के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की शाम करीब 7.30 बजे से 11 बजे रात तक प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी उग्रवादियों पर गांव के 34 लोगों की तेजधार हथियार से गला व पेट फाड़कर और गोली मार कर निर्मम हत्या कर नरसंहार करने का आरोप है। इस नरसंहार कांड में मारे गए अवध किशोर शर्मा की पत्नी चितांमणी देवी के बयान पर पुलिस ने 19 मार्च 1999 को करपी थाने में कांड दर्ज किया था। जबकि नरसंहार की सूचना घटना के दिन ही 11.40 बजे रात में पुलिस को मिल गयी थी। दर्ज बयान के अनुसार पुलिस वर्दी में प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी के उग्रवादियों ने सेनारी को घेर लिया व गांव के लोगों को घर से पकड़ कर ठाकुरबाड़ी के पास ले गए। उग्रवादियों ने एक-एक कर 34 लोगों को मार डाला।
जहानाबाद सिविल कोर्ट के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तीन रंजीत कुमार सिंह ने इस नरसंहार के 15 आरोपियों को 15 नवंबर 2016 को सजा सुनाई थी। जिसमें 11 को मौत व अन्य को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। सेशन कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में 23 अन्य को बरी कर दिया था। पुलिस ने कई बार में 74 के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। कुछ की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। निचली अदालत ने बचेश कुमार सिंह, बुधन यादव, गोपाल साव, सत्येन्द्र दास, ललन पासी, द्वारिका पासवान, करीमन पासवान, गोरई पासवान, उमा पासवान व दुखन कहार उर्फ दुखन राम को मौत की जा सुनाई थी। मुगेश्वर यादव, विनय पासवान और अरिवंद पासवान को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। इन्हीं लोगों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
वहीं सेनारी गांव के लोगों का कहना है कि यह फैसला निराशाजनक है। ग्रामीण नीतीश कुमार, अजय शर्मा आदि ने कहा कि न्यायालय की भाषा में साक्ष्य के अभाव भले ही हैं। पर हमारे परिजनों की गला रेतकर जघन्य हत्या कर दी गई। इससे बड़ा साक्ष्य क्या होगा। सभी लोग जानते हैं कि 18 मार्च 1999 की रात एमसीसी के हथियारबंद लोगों ने 34 लोगों की हत्या ठाकुरबाड़ी के पास ले जाकर कर दी थी। आखिर कौन सा साक्ष्य चाहिए था। समझ से परे हैं। आरोपियों ने गर्दन काटने के बाद उनके पेट को चीर दिया था। नीतीश ने बताया कि नरसंहार में वह अपने चाचा को खोया था। वहीं अजय शर्मा ने बताया कि नक्सलियों ने उसके भाई की हत्या कर दी थी। महेश शर्मा, अरविंद शर्मा, सुरेश शर्मा ने बताया कि हमलोगों ने अपना परिवार खोया है। अब खोने के लिए बाकी क्या रह गया है। यह भी कहा कि निचली अदालत के फैसले से न्याय मिलने की आस जगी थी। लेकिन, आज वह भी समाप्त हो गई।


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