राष्ट्रनायक न्यूज।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फरीदाबाद नगर निगम क्षेत्र में सूरजकुंड से सटे खोटी गांव की करीब 60 हजार आबादी के बेघर होने का खतरा पैदा हो गया है। मानवीय दृष्टिकोण से भले ही यह मार्मिक लगे कि 80 एकड़ में फैले शहरीकृत गांव के करीब दस हजार मकान तोड़े जाने हैं लेकिन यह भी कड़वा सच है कि राजस्थान के बड़े हिस्से, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब को सदियों से रेगिस्तान बनने से रोकने वाली अरावली पर्वत शृंखला को बचाने के लिए यदि न्यायपालिका सख्ती नहीं करती तो नेता और अफसर और जमीन माफिया अब तक समूची पर्वत शृंखला को निगल गया होता।
गुजरात के रवेड़ से आरम्भ होकर करीब 692 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वतमाला का विसर्जन देश के सबसे शक्तिशाली स्थान रायसीना हिल्स पर होता जहां राष्ट्रपति भवन स्थित है। अरावली पर्वतमाला को दुनिया का सबसे प्राचीन पहाड़ों में गिना जाता है। ऐसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचना का बड़ा हिस्सा बीते चार दशकों में पूरी तरह केवल नदारद हुआ, बल्कि कई जगह गहरी खाई हो गई। अरावली की प्राकृतिक संरचना नष्ट होने की त्रासदी है कि वहां से गुजरने वाली साहिनी, कृष्णावति जैसी नदियां गायब हो गईं। वन्य संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि 1980 में अरावली क्षेत्र में 247 वर्ग किलोमीटर पर आबादी थी, आज यह 638 वर्ग किलोमीटर हो गईहै। इसके 47 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रमें फैक्ट्रियां स्थापित हैं। भूमाफिया की नजर कई वर्षों से अरावली पर्वत शृंखला पर लगी हुई हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति पैदा कैसे हुई। फरीदाबाद ही नहीं, गुरुग्राम, नूंह, राजस्थान के कई भागों में अरावली के पहाड़ गायब हो चुके हैं। वन संरक्षणकानून होने के बावजूद अरावली पर्वत शृंखला भूमाफिया का शिकार हो गई। जहां यह वन संरक्षणकानून लागू होता है वहां गैर वानिकी कार्य नहीं हो सकता। वहां पर सरकार से सम्बन्धित विकास कार्य ही किए जा सकते हैं।
सवाल यह है कि वहां रिहायशी कालोनिया कैसे बस गईं। सरकारें सब कुछ देखकर भी अनजान बनी रहीं, क्योंकि ऐसा राजनीतिक संरक्षण, भूमाफिया और अफसरों की साठगांठ के बिना हो ही नहीं सकता। पर्यावरण संरक्षण को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह के अवैध कब्जे प्रशासन, वन विभाग, स्थानीय निकाय की अनदेखी के बिना सम्भव नहीं हैं। फरीदाबाद के खोटी गांव में मकान बनाने वालों में ऐसे लोग भी होंगे जिन्होंने अपने घर का सपना साकार करने के लिए उम्रभर की कमाई लगाई होगी। अनेक लोगों ने बैंकों से ऋण भी लिए होंगे। अब उन पर गाज गिरना तय है लेकिन उन अफसरों और दलालों को कुछ नहीं होगा, जिन्होंने कागजात पूरा करने, निर्माण करने में मदद कर अपने वारे न्यारे किए और लाखों रुपया अपनी तिजोरियों में भर लिया। जब वहां प्लाट काटे गए और निर्माण शुरू हुआ तो तब लोगों को रोका क्यों नहीं गया। अदालत ने 2009 में हरियाणा के अरावली इलाके में खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी थी, जिसमें गुरुग्राम और मेवात का हिस्सा शामिल था। अदालत का कहना था कि स्वच्छ वातावरण संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना हमारा दायित्व है।
2018 में भी अदालत ने फरीदाबाद एन्क्लेव में अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। साथ ही एन्क्लेव का निर्माण कराने वाली कम्पनी पर अरावली पुनर्वास कोष में 5 करोड़ रुपए जमा कराने का आदेश दिया था। जिन लोगों ने खोटी गांव में नियम कायदों को ताक पर रखकर स्वच्छ पर्यावरण की गोद में घर बना लिए, उन्होंने भी कभी नहीं सोचा-समझा होगा कि उनकी गतिविधियो से समूची पारिस्थितिकी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने यह भी कहा है कि इस इलाके में रह रहे लोगों के पास कोई और जगह नहीं है तो उन्हें हटाए जाने से पहले बसाया जाए। अरावली पर्वत शृंखला राजस्थान की ओर से झुलसाने वाली और गर्म हवा को सीधे दिल्ली आने से रोकती है। इसके अलावा अरावली मिट्टी के क्षरण भूजल का स्तर बनाए रखने और जमीन की नमी बरकरार रखने वाले जोहड़ों और नदियों को संरक्षण देती है। यह पर्वतमाला बहुत बड़े इलाके के लिए एक जीवन रेखा का काम करती है। इसलिए अरावली को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े कदम उठाए हैं। मानवीय हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि अवैध खनन के चलते पहाड़ गायब हो रहे हैं। उपजाऊ जमीन पर रेत की परत चढ़ चुकी है। अरावली को बचाना बहुत जरूरी है।
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