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सीएम नीतीश के इस फैसले के बाद से बिहार में बदल जाएगी यह व्यवस्था

पटना। राज्य में अब सरकारी सहायता से अरवा चावल के मिल नहीं लगेंगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जन वितरण दुकानों में उसना चावल देने को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर माना तो सहकारिता विभाग ने उसना चावल मिलों पर ही काम करना शुरू कर दिया है। विभाग नये मिलों की डीपीआर तो बनाएगा ही साथ में पुराने अरवा चावल मिलों को उसना में बदलने की लागत का भी आकलन करेगा। लागत अनुमान के अनुसार हुआ तो नयी मिलों के साथ पुरानी का भी उसना में बदलने की प्रक्रिया शुरू होगी।

सहकारिता विभाग ने उसना चावल मिल की डीपीआर बनाने के लिए एजेंसी से बात कर ली है। जल्द ही डीपीआर का काम पूरा हो जाएगा। मिलों के लिए डीपीआर बनाकर विभाग कैबिनेट की मंजूरी लेगा। उसके बाद सहकारी संस्थाओं से मिल के लिए आवेदन मांगे जाएंगे। उसना चावल मिल की लागत अधिक होगी। लिहाजा विभाग इसपर अनुदान बढ़ाने पर भी विचार करने का आग्रह सरकार से कर सकता है। दो टन क्षमता वाली अरवा चावल मिलों की डीपीआर के अनुसार लागत 59 लाख 45 हजार है। इस पर सरकार 50 प्रतिशत अनुदान देती है। लेकिन उसना चावल मिलों में धान सुखाने के लिए जमीन की अधिक जरूरत होगी। लिहाजा इसकी लागत बढ़ जाएगी। राज्य सरकार अगर जन वितरण प्रणाली की दुकानों में उसना चावल देना शुरू करेगी तो पैक्सों में अरवा मिल की जरूरत नहीं रह जाएगी। पैक्सों में सरकारी स्तर पर खरीदे गये धान की कुटाई होती है और वही चावल पीडीएस दुकानों में जाता है।

राज्य सरकार ने पहले कृषि रोडमैप में 2017 तक पैक्सों में 350 चावल मिल लगाने का लक्ष्य तय किया था। इस लक्ष्य के विरुद्ध सहकारिता विभाग ने 345 चावल मिलों का निर्माण तय समय में कर लिया था। इसके बाद दूसरे कृषि रोड मैप में 2022 तक अलग से 260 चावल मिला लगाने का लक्ष्य है। इसमें भी काफी मिल लग गये हैं। अभी लगभग 437 चावल मिल तैयार हैं। लेकिन अब नई व्यवस्था में मिलें बदल जाएंगी। पहले रोडमैप में एक टन प्रति घंटा की क्षमता वाले चावल मिल का निर्माण किया गया था। ये सभी मिलें डीजल से चलने वाली हैं। लेकिन अब जो भी मिल बन रही हैं, उनकी क्षमता दो टन प्रति घंटा कर दी गई है। ये मिलें अब डीजल आधारित न होकर बिजली आधारित बनाई जा रही हैं। लिहाजा इनके संचालन में खर्चा भी कम आयेगा। मिलों के निर्माण के लिए पैक्सों को सिर्फ जमीन की व्यवस्था करनी होती है। नक्शा और मॉडल विभाग देता और तकनीकी सहायता के लिए इंजीनीयर की प्रतिनियुक्ति जिला प्रशासन करता है। अगर पैक्स के पास जमीन है तो ठीक वरना लीज पर भी जमीन ले सकते हैं। उसका किराया उन्हें ही अदा करना होगा।

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