राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

अमेरिका की मौजूदगी के बावजूद अफगानिस्तान पर आतंकी कब्जा होना पूरी दुनिया के लिए बड़ा संदेश

राष्ट्रनायक न्यूज।
दृश्य 1: सुरक्षित स्थान की तलाश में अपने ही देश से पलायन करने के लिए एयरपोर्ट के बाहर हजारों महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की भीड़ लगी है। कई दिन और रात से वो भूखे प्यासे वहीं डटें हैं इस उम्मीद में कि किसी विमान में सवार हो कर वो अपना और अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करने में कामयाब हो जाएंगे। बाहर तालिबान है, भीतर नाटो की फौजें। हर बीतती घड़ी के साथ उनकी उम्मीद की डोर टूटती जा रही है। ऐसे में महिलाऐं अपने छोटे छोटे बच्चों की जिंदगी को सुरक्षित करने के लिए उन्हें नाटो फौज के सैनिकों के पास फेंक रही हैं। इस दौरान कई बच्चे कँटीली तारों पर गिरकर घायल हो जाते हैं।

दृश्य 2: इस प्रकार की खबरें और वीडियो सामने आते हैं जिसमें अफगानिस्तान में छोटी-छोटी बच्चियों को तालिबान घरों से उठाकर ले जा रहा है।

दृश्य 3: अमेरिकी विमान टेक आॅफ के लिए आगे बढ़ रहा है और लोगों का हुजूम रनवे पर विमान के साथ-साथ दौड़ रहा है। अपने देश को छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कुछ लोग विमान के टायरों के ऊपर बनी जगह पर सवार हो जाते हैं। विमान के ऊंचाई पर पहुंचते ही इनका संतुलन बिगड़ जाता है और आसमान से गिरकर इनकी मौत हो जाती है। इनके शव मकानों की छत पर मिलते हैं।

दृश्य 4: एक जर्मन पत्रकार की खोज में तालिबान घर-घर की तलाशी ले रहा है, जब वो पत्रकार नहीं मिलता तो उसके एक रिश्तेदार की हत्या कर देता है और दूसरे को घायल कर देता है। ऐसे न जाने कितने हृदयविदारक दृश्य पिछले कुछ दिनों दुनिया के सामने आए। क्या एक ऐसा समाज जो स्वयं को विकसित और सभ्य कहता हो उसमें ऐसी तस्वीरें स्वीकार्य हैं? क्या ऐसी तस्वीरें महिला और बाल कल्याण से लेकर मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए बने तथाकथित अंतरराष्ट्रीय संगठनों के औचित्य पर प्रश्न नहीं लगातीं?

क्या ऐसी तस्वीरें अमेरिका और यूके समेत 30 यूरोपीय देशों के नाटो जैसे तथाकथित वैश्विक सैन्य संगठन की शक्ति का मजाक नहीं उड़ातीं?

इसे क्या कहा जाए कि विश्व की महाशक्ति अमेरिका की सेनाएँ 20 साल तक अफगानिस्तान में रहती हैं, अफगान सिक्युरिटी फोर्सेज पर तकरीबन 83 बिलियन डॉलर खर्च करती है उन्हें ट्रेनिंग ही नहीं हथियार भी देती हैं और अंत में साढ़े तीन लाख सैनिकों वाली अफगान फौज 80 हजार तालिबान लड़ाकों के सामने बिना लड़े आत्मसमर्पण कर देती है। वहां के राष्ट्रपति एक दिन पहले तक अपने देश के नागरिकों को भरोसा दिलाते हैं कि वो देश तालिबान के कब्जे में नहीं जाने देंगे और रात को देश छोड़कर भाग जाते हैं। तालिबान सिर्फ अफगानिस्तान की सत्ता पर ही काबिज नहीं होता बल्कि आधुनिक अमेरिकी हथियार, गोला बारूद, हेलीकॉप्टर और लड़ाकू विमानों से लेकर दूसरे सैन्य उपकरण भी तालिबान के कब्जे में आ जाते हैं।

अमेरिकी सेनाओं के पूर्ण रूप से अफगानिस्तान छोड़ने से पहले ही यह सब हो जाता है वो भी बिना किसी संघर्ष के। ऐसा नहीं है कि सत्ता संघर्ष की ऐसी घटना पहली बार हुई हो। विश्व का इतिहास सत्ता पलट की घटनाओं से भरा पड़ा है। लेकिन मानव सभ्यता के इतने विकास के बाद भी इस प्रकार की घटनाओं का होना एक बार फिर साबित करता है कि राजनीति कितनी निर्मम और क्रूर होती है। अफगानिस्तान का भारत का पड़ोसी देश होने से भारत पर भी निश्चित ही इन घटनाओं का प्रभाव होगा। दरअसल भारत ने भी दोनों देशों के सम्बंध बेहतर करने के उद्देश्य से अफगानिस्तान में काफी निवेश किया है। अनेक प्रोजेक्ट भारत के सहयोग से अफगानिस्तान में चल रहे थे। सड़कों के निर्माण से लेकर डैम, स्कूल, लाइब्रेरी यहाँ तक कि वहाँ की संसद बनाने में भी भारत का योगदान है। 2015 में ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहाँ की संसद भवन का उद्घाटन किया था जिसके निर्माण में अनुमानत: 90 मिलियन डॉलर का खर्च आया था।

लेकिन आज अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान काबिज है जो एक ऐसा आतंकवादी संगठन है जिसे पाकिस्तान और चीन का समर्थन हासिल है। भारत इस चुनौती से निपटने में सैन्य से लेकर कूटनीतिक तौर पर सक्षम है। पिछले कुछ वर्षों में वो अपनी सैन्य शक्ति और कूटनीति का प्रदर्शन सर्जिकल स्ट्राइक और आतंकवाद समेत धारा 370 हटाने जैसे अनेक अवसरों कर चुका है लेकिन असली चुनौती तो संयुक्त राष्ट्र संघ, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, यूनिसेफ, जैसे वैश्विक संगठनों के सामने उत्पन्न हो गई है जो मानवता की रक्षा करने के नाम पर बनाई गई थीं। लेकिन अफगानिस्तान की घटनाओं ने इनके औचित्य पर ही प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

दरअसल राजनीति अपनी जगह है और मानवता की रक्षा अपनी जगह। क्या यह इतना सरल है कि स्वयं को विश्व की महाशक्ति कहने वाले अमेरिका की फौजों के रहते हुए वो पूरा देश ही उस आतंकवादी संगठन के कब्जे में चला जाता है जिस देश में वो उस आतंकवादी संगठन को खत्म करने के लिए 20 सालों से काम कर रहा हो? अगर हाँ, तो यह अमेरिका के लिए चेतावनी है और अगर नहीं तो यह राजनीति का सबसे कुत्सित रूप है। एक तरफ विश्व की महाशक्तियां इस समय अफगानिस्तान में अपने स्वार्थ की राजनीति और कूटनीति कर रही हैं तो दूसरी तरफ ये संगठन जो ऐसी विकट परिस्थितियों में मानवीय मूल्यों एवं संवेदनाओं की रक्षा करने के उद्देश्य से आस्तित्व में आईं थीं वो अफगानिस्तान के इन मौजूदा हालात में निरर्थक प्रतीत हो रही हैं।

डॉ. नीलम महेंद्र

You may have missed