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चाँद के दीदार के साथ ही आज से इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पवित्र महीना माह-ए-रमज़ान की शुरुआत

चाँद के दीदार के साथ ही आज से इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पवित्र महीना माह-ए-रमज़ान की शुरुआत

छपरा (सारण)-  चाँद के दीदार के साथ ही आज से इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पवित्र महीना माह-ए-रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है। कल से पूरे एक माह के लिये मुस्लिम समाज बड़ी शिद्दत से रोज़े रखते है और ख़ुदा की इबादत करते है। पूरे महीने में सामान्य दिनों की तुलना मस्जिदों में ज्यादा लोग इक्कठा होकर इफ्तार करते है और खुदा की इबादत। लेकिन इस वर्ष के माह ए रमजान में हम सभी के आत्मसयंम का परीक्षा होगा। हम सब को ये समझना होगा कि जब मुस्लिम धर्म के सबसे पवित्र स्थल मक्का और मदीना की मस्जिदो में नमाज और कोई इफ्तार पार्टी नही होगी तो फिर हमे भी ऐसे काम बिल्कुल नहीं करना चाहिए। हम सब के द्वारा लॉक डाउन के नियमों और सोशल डिस्टनसिंग की कठोरता से पालन जरूरत की जरूरत है। इस वर्ष की रमज़ान में हम सब को अपनी छोटी-छोटी खुशियों को कुर्बानी देनी होगी। क्योंकि रमज़ान का मतलब ही होता है अपनी खुशियों की कुर्वानी देना । और तभी समाज और देश के लिए सच्चा रमजान मनेगा।

इस वर्ष का माहे रमज़ान हम सब के लिये और भी प्रासंगिक है। माहे रमज़ान पूरी मानव जाति को प्रेम,करुणा और भाईचारे की संदेश देती है। और नफरत के इस दौर में पूरे विश्व को इन्ही चीजों की जरूरत भी है।

पूरे विश्व एक विकट परिस्तिथि से गुजर रहा है,पूरी दुनिया युद्ध की मैदान में तब्दील हो गई है। एक तरफ पूरी मानवता तो दूसरी और एक विनाशकारी वायरस । चारो ओर से नकरात्मक खबरों का शिलशिला थमने का नाम नही ले रहा। ऐसी परिस्थिति में भी अपनी आत्मसंयम और अपनी उम्मीदों को बरकरार रखना भी एक तरह का खुद की इबादत करना है।

रोजे में उपवास और जल-त्याग का मक़सद यह है कि आप दुनिया के भूखे और प्यासे लोगों का दर्द महसूस कर सकें। इस रमजान हम सभी अपने अपने जरूरतों में थोड़ी कटौती कर अपने आस पड़ोस के भूखे,गरीब और अकीदतमंदों की जरूरतों को पूरी करेगे।

पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा है कि सिर्फ इंसान ही नहीं सभी जीव जंतु ईश्वर के कुटुंब है,आज जरूरत है हम सबो को आपने हुज़ूर के उपदेशों का अनुसरण का। ऐसे सोच को आगे बढ़ाने का, उनके कहे हर एक शब्द पर अमल करने का तभी रमजान की वास्तविक उद्देश्यो पूर्ति होगी।

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