राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

वाह भई पप्पू यादव…

राष्ट्रनायक न्यूज। कोरोना महामारी ने जब पूरे देश में भयंकर कोहराम इस तरह मचा रखा है कि लोग इसके शिकार बने अपने प्रियजनों के शवों को नदियों में बहाने को मजबूर हो रहे हैं तो हमें अपने भारत की उस शासन व्यवस्था की याद आती है जिसमें ‘लोगों द्वारा लोगों के लिए लोगों की सरकार’ की स्थापना का सिद्धान्त समूचे समाज की विविधता को एकजुट करते हुए केवल जन कल्याण की बात करता है। ऐसे समय ही हमें अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की याद आती है जिन्हें हर मतदाता अपने एक वोट की ताकत से चुन कर विभिन्न अधिकृत सदनों में भेजता है। इन्हें हम जनप्रतिनिधि के नाम से जानते हैं जिन्हें लोकतन्त्र में जनता का नौकर कहा जाता है। इन जनप्रतिनिधियों का पहला कर्त्तव्य जनता के प्रति ही होता है जो उन्हें ‘जनसेवक’ का दर्जा देता है किन्तु हमारे ही समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें ‘समाज सेवक’ कहते हैं। प्राय: यह देखने में आता है कि जब जन सेवक अपने कर्त्तव्य से मुंह मोड़ लेते हैं तो समाज सेवक उठ कर खड़े हो जाते हैं और लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ये समाज सेवक कोई भी हो सकते हैं।

कोरोना के इस भयंकर दौर में हम देश के विभिन्न स्थानों पर ऐसे समाजसेवकों की कहानियां पढ़ते और सुनते रहते हैं परन्तु मूल प्रश्न यह है कि ऐसे समय में जन सेवक क्यों दिखाई नहीं पड़ते और दिखाई भी पड़ते हैं इक्का-दुक्का के तौर पर । मगर लोकतन्त्र की शर्त यह भी होती है कि संकटकाल में ऐसे जनसेवकों का पदार्फाश किया जाना चाहिए जो चुनावों के समय जनता को झूठे वादों में उलझा कर ‘जन प्रतिनिधि’ तो बन जाते हैं मगर जब ‘जनसेवक’ बनने की जरूरत होती है तो कहीं सुरक्षित स्थान पर दुबक जाते हैं। बेशक बिहार के पूर्व सांसद श्री राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का इतिहास दागदार हो सकता है मगर कोरोना महामारी में जूझते लोगों की वह पूरे तन, मन, धन से सेवा कर रहे थे और जरूरतमन्दों को आक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर और रेमडेसिविर जैसी जीवन रक्षक औषधियां उपलब्ध करा रहे थे।

उनकी गिरफ्तारी से एक सवाल उठता है कि क्या जन सेवक बनना गुनाह है? इसका उत्तर बिहार सरकार को इस प्रकार देना होगा कि बिहार के हरेक अस्पताल से लेकर प्रत्येक कोरोना पीड़ित व्यक्ति को आवश्यक चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने की गारंटी मिल सके अन्यथा उन्हें अपने जन सेवक कहलाने का अधिकार त्यागना होगा। निश्चित रूप से पप्पू यादव एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और उनका अपना दल जन अधिकार पार्टी भी है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि उनसे समाज सेवा करने का अधिकार केवल इसलिए छीन लिया जाये कि वह बिहार की उधड़ी हुई और जर्जर चिकित्सा प्रणाली के सत्य को उजागर कर रहे थे और बता रहे थे कि किस प्रकार बिहार का ही एक चुना हुआ सांसद जनता के पैसे से खरीदी हुई दो दर्जन से अधिक एम्बुलेंसों को ‘खड़ा’ करके जनता के दर्द से आंखें फेर रहा था।

सवाल यह नहीं है कि वह सांसद किस पार्टी का है या कौन सी पार्टी सत्ता में है या विपक्ष में बल्कि सवाल यह है कि वह ‘सांसद’ है और उसे सारन लोकसभा क्षेत्र की जनता ने चुना है। पप्पू यादव ने इस हकीकत का खुलासा किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया बल्कि आम जनता के लाभ के लिए किया क्योंकि ये एम्बुलेंस सांसद निधि से खरीदी गई थीं जो जनता की सेवा के लिए ही थीं। सांसद निधि किसी सांसद को खैरात के तौर पर नहीं दी जाती है बल्कि अपने क्षेत्र की जनता की सेवा के लिए दी जाती है। यह कह देना कि एम्बुलेंस चलाने के लिए ड्राइवर ही नहीं थे अत: ये खड़ी हुई थीं बिहार की महान और सुविज्ञ तथा राजनीतिक रूप से सजग जनता का घोर अपमान है।

कौन कह सकता है कि बिहार जैसे राज्य में जहां बेरोजगारी पूरे देश की सर्वोच्च पंक्ति में हो वहां ड्राइवर नहीं मिलेंगे? पप्पू यादव ने एक प्रेस कान्फ्रेंस करके ड्राइवरों की लाइन लगा दी। क्या लोगों को मालूम नहीं है कि श्री नरेन्द्र मोदी की पिछली सरकार में यही महान सांसद मन्त्री भी थे। उनका पत्ता क्यों काटा गया था? मगर नीतीश कुमार ने पप्पू यादव को पटना में कोरोना नियमों का उल्लघंन करने के नाम पर गिरफ्तार करके उन्हें मधेपुरा जिले की पुलिस के हवाले 1989 के एक पुराने मामले में कर दिया। यह मामला पप्पू यादव के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे का है।

सवाल यह है कि पप्पू यादव तो इस मामले के चलते ही पटना मेडिकल कालेज से लेकर अन्य विभिन्न अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे और जहां जिस चीज की जरूरत होती थी उपलब्ध करा रहे थे। तब उन्हें मधेपुरा पुलिस ने गिरफ्तार क्यों नहीं किया? क्या पप्पू यादव की गिरफ्तारी से बिहार की बदहाल चिकित्सा प्रणाली सुधर जायेगी? बिहार की खस्ता हाल स्वास्थ्य प्रणाली पर इससे पर्दा नहीं पड़ सकता। अपने पुराने दागदार अतीत के बावजूद पप्पू यादव यदि जन सेवक बनने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें इसके लिए उन्हें सजा देने की बजाय उनका मनोबल बढ़ाया जाना चाहिए था जिससे वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें मगर यहां तो उल्टा ही काम हो गया और उन्हें शासन को सचेत करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।

सत्ता को यह पता होना चाहिए कि यह देश गांधी का देश है। बापू ने आजादी से पहले ही भारत में स्थित अमेरिका के अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के नई दिल्ली स्थिति विशेष संवाददाता ‘लुई फिशर’ को साक्षात्कार देते हुए कहा था कि ‘वह उस व्यवस्था में विश्वास करते हैं जिसमें किसी अपराधी के भी समाजसेवक बनने का मार्ग प्रशस्त हो’। यह देश तो उस बाल्मीकि का है जिसने बुरे काम छोड़ कर रामायण की रचना की। मगर भारत में पप्पू यादव अकेले नहीं हैं जो जनसेवा में लगे हुए थे बल्कि हजारों की संख्या में हर कस्बे और शहर में ऐसे लोग हैं जो कोरोना के बुरे वक्त में लोगों की मदद कर रहे हैं। क्या इनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए?

You may have missed