क्रिमिया की तरह पीओके भारतीय संघ का अंग है, अभिन्न
- अराष्ट्रवादियों के नारे अब भी जज्ब है दिल में ‘ लाल किले पर लाल निशान, माँग रहा है हिन्दुस्तान
- पशुपतिनाथ से तिरुपति प्रस्तावित रेडकारपेट की नींव है नेपाल सरकार
- भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अब चीन शिष्यों के अलावे सर्वमान्य
लेखक: राणा परमार अखिलेश। छपरा (बिहार)
शक्ति स्थानांतरण को स्वतंत्रता और न जाने भारतीय जन मानस के साथ हुए मिथ्या व भ्रामक प्रचार, मनगढ़ंत इतिहास, आततायियों का महिमा मंडन वर्ण संघर्ष के सहारे देश की सत्ता पर काबिज रहे तत्व आज भी साम्यवादी चीन, इस्लामिक आतंकवाद का पोषण पाकिस्तान की वकालत करते देखे जा रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण को सही मानता आ रहा है तो फारूख अब्दुला,गुलाम नबी आजाद सहित लिबरल व स्वयंभू सेक्युलर नेताओं की पाकिस्तान हमदर्दी भी देखी जा सकती है । ऐसे में क्या क्रिमिया की तरह पीओके भारतीय संघ का अंग है अभिन्न और सैन्य कार्रवाई से पंडित नेहरू के भूल को सुधारा जा सकता है ? ख्रुश्चेव ने जैसे यूक्रेन को तोहफे में क्रिमिया को दिया था ,क्या पंडित नेहरू ने वैसा नहीं किया था क्या? बहरहाल, अतीत में हुई भूलों में सुधार हो रहे हैं और उम्मीद भी है एलओसी की प्रासंगिकता ही समाप्त होकर ऑक्साई चिन, गिलगित-बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद अखंड जम्मू-कश्मीर में शामिल हो जाए।
जम्मू-कश्मीर विवाद की जड़ में मुस्लिम कान्फ्रेंस व कांग्रेस की भूमिका इतिहास हमें आइना दिखाता है कि हमने कौन सी गलतियाँ की हैं? जम्मू में सक्रिय प्रजा परिषद को आरएसएस का अंग और तत्कालीन मुस्लिम कान्फ्रेंस (अब नेशनल कान्फ्रेंस) को सेक्युलर समझने की भूल कांग्रेस ने की थी। 1942 के पूर्व 1931 से 36 तक क्वीट कश्मीर (कश्मीर छोड़ो आन्दोलन) में मुस्लिम चेहरा शेख अब्दुल्ला व सेक्युलर चेहरा पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका क्या सही ठहराया जा सकता है? जब 1947 के 15 अगस्त को कथित स्वतंत्रता प्राप्त हुए, सीधी कार्रवाई नोआखाली, करांची, लाहौर में हिन्दुओं- सिक्खों के कत्ले-आम के दास्तान अलग हैं । देशी रियासतों में जम्मू-कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह के साथ पंडित नेहरू का पूर्वाग्रह भी विलय में विलंब का कारण नहीं है क्या? कबाइलियों व पाकिस्तान सैनिकों के हमले शाही सेना के मुस्लिम सैनिक व अधिकारियों की गद्दारी के बाद महाराजा हरि सिंह द्वारा इंस्टूमेंट ऑफ एक्ससशेशन पर हस्ताक्षर, शेख अब्दुल्ला के प्रधानमंत्री पद की शपथ के बाद भारतीय सेना द्वारा कबाइलियों व पाकिस्तान सैनिकों को खदेड़ कर बाहर करते समय यूएनओ में भारत सरकार का जाना, सीज फायर क्या पंडित नेहरू द्वारा भारत के अभिन्न भू-भाग को पाकिस्तान को गिफ्ट में नहीं दिया गया?
तिब्बत पर चीन की प्रभुसत्ता की स्वीकृति क्या सही ठहराया जा सकता है? बहरहाल, 40 लाख आबादी वाले पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में शामिल करना न केवल अखंड जम्मू-कश्मीर का निर्माण है बल्कि स्वर्गीय महाराजा हरि सिंह के अधिमिलन पत्र का सम्मान है।
अप्रासंगिक हो चुके हैं, सुरक्षा परिषद के संकल्प 47 अध्याय 6 पंडित नेहरू द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में दाखिल मामला संकल्प 47 अध्याय 6 शिमला व लाहौर समझौते के बाद बाध्यकारी नहीं रहे। 2001 में संयुक्तराष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव कोफ़ी अन्नान ने स्पष्ट कहा था कि ” कश्मीर प्रस्ताव सलहकार सिफारिशें मात्र हैं ।इसकी तुलना पूर्वी तिमोर व इराक से करना सेब और संतरे की तरह हैं ।” बहरहाल, पूर्व में की गई भूल सुधार ही राष्ट्र धर्म है।शिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग निर्माण बना 1962 में चीनी आक्रमण का कारण कहना न होगा कि अखंड जम्मू-कश्मीर का एक चैथाई भाग पाकिस्तान को गिफ्ट में मिला और पांचवे भाग के बराबर चीन ने 1962 में ऑक्साई चिन पर कब्जा कर ले लिया और पाकिस्तान ने 15180 वर्ग किलोमीटर ‘कारोकोरम पथ के लिए उपहार दिया । अक्साई चिन व पीओके सहित 43180 वर्ग किलोमीटर भारतीय भू- भाग चीन के कब्जे में है। इस भूल सुधार सैन्य स्तर व कुटनयिक स्तर के संयुक्त प्रयास से संभव है।
भारत के मित्र रूस ने 1954 की क्रिमिया भूल में की सुधार :
यद्यपि सोवियत संघ रूस की इकाई यूक्रेन थी फिर भी 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे के तौर पर दे दिया था। यूएसएसआर के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव के प्रेत्रायिका, ग्लेत्सोनोत्स के बाद यूक्रेन अलग राष्ट्र बना और क्रिमिया उसके कब्जे में रहा । जो 18 वीं सदी में भी रूप के ज़ारशाही का हिस्सा था। 26,200 वर्ग किलोमीटर में प्रायद्वीप क्रमिया मे रूसी मूल के निवासियों की संख्या अधिक है। तत्कालीन यूक्रेन सरकार द्वारा रूसी जनता का उत्पीड़न भी पीओके निवासियों जैसा रहा । लिहाजा, 26 फरवरी 2014 को रूस की सेना क्रिमिया की राजधानी सिमफ़ोरोपोल में संसद भवन व सरकारी इमारतों को कब्जे में ले लिया । 2 मार्च 2014 को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने फौज भेजने का अनुमोदन किया और 18 मार्च को रूसी फेडरेशन द्वारा पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हस्ताक्षर व मुहर के बाद क्रिमिया रूस प्रांत बन कर ख्रुश्चेव की भूल में संशोधन कर लिया ।
चीन पाक, मलेशिया अलग थलग कैरोना वाहक चीन के विरूद्ध विश्व की चार परमाणु संपन्न शक्तियों के अलावे इस्लामिक राष्ट्र भारत के साथ है । चीन उइग़ुर मुसलमानों का उत्पीड़न कर रहा, लेकिन इस्लामिक देश खामोश हैं । हाँ, तो कैरोना महामारी में चीन घिर चुका है। अमरीका रूस भारत के साथ है। प्रशांत महासागर व हिन्द महासागर में चीनी युद्ध पोतों का मुकाबला हो रहा है । हांगकांग में लोकतंत्र की मांग, ताइवान को मान्यता से परेशान चीन लद्दाख में गीदड़ भभकी दे रहा है तो पाकिस्तान भी एलओसी पर आमने-सामने है। नेपाल कालापानी पर दावा कर रहा है।लेकिन भारत सैन्य और कुटनयिक स्तर पर सामना कर रहा है। नेपाली जनता अपने माओवादी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने रही है ‘ राजा लाओ, देश बचाओ ‘ क्योंकि चीन माउण्ट एवरेस्ट सहित नेपाल को हथियाना चाह रहा है। पीओके व बलूचिस्तान में बगावत की चिनगारी भड़क उठी है। थल सेना ध्यक्ष को संसद संसद के आदेश की प्रतीक्षा है। भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र है। कैरोना, चीन, पाकिस्तान, नेपाल को उत्तर दे रहा है। डब्ल्यूएचओ में भारत का सर्वोच्च स्थान पाना चीन के ‘लजानी बिल्ली खंभा नोचे’ की स्थिति में ला दिया है। बहरहाल, युद्ध की घोषणा न तो पाकिस्तान कर रहा है न चीन व नेपाल । यदि करता है तो समय बताएगा किसमे कितना दम है । यद्यपि अराष्ट्रवादियों, कथित लिवरलरों ,सेक्युलरिस्टों की भूमिका सामने है। चीन प्रस्तावित पशुपति नाथ से तिरुपति तक रेड कार्पेट व लाल किला पर लाल निशान, माँग रहा है हिन्दुस्तान ।’ के नारे व गजबा- ए – हिंद, निजाम- ए- मुस्तफा इनके दिल से लेकर जुबान तक हैं ।बहरहाल, राष्ट्रवाद बनाम अराष्ट्रवाद की जंग का परिणाम देखना है।


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