राष्ट्रनायक न्यूज। भारत ने हमेशा यही चाहा है कि उसके पड़ोस के देशों में सियासी स्थिरता हो। लोकतांत्रिक सरकारें हों लेकिन पड़ोसी देश नेपाल में बंदूक से निकली क्रांति के बाद आज तक राजनीतिक स्थिरता नहीं आई। नेपाल में अब सियासी संकट पहले से कहीं अधिक गहरा गया है। चीन के इशारे पर भारत विरोधी रुख अपनाने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को एक के बाद एक झटका लग रहा है। केपी शर्मा ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वास मत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उनकी सिफारिश पर पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर देश में 11 तथा 19 नवम्बर को चुनाव कराने का ऐलान किया था। प्रतिनिधि सभा को भंग करने के मामले में विपक्ष ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यह मामला अभी नेपाली सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। अल्पमत सरकार का नेतृत्व करने के बावजूद ओली ने 20 कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति कर दी। अब सवाल यह है कि अगर संसद भंग कर दी गई है तो फिर ओली मंत्रियों की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केपी शर्मा द्वारा की गई 20 कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति रद्द कर दी है। नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सदन भंग होने के बाद कैबिनेट विस्तार असंवैधानिक है और इसलिए मंत्री अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन नहीं कर सकते। अब ओली के पास केवल पांच मंत्री बचे हैं। हालांकि ओली ने सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधि सभा भंग करने के फैसले का पुरजोर बचाव किया है।
ओली का तर्क है कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है, क्योंकि वह देश के विधायी और कार्यकारी निकायों का दायित्व नहीं निभा सकती। नेपाल की सियासत अब पूरी तरह कानूनी दांवपेचों में उलझ कर रह गई है। वहां के लोग कोरोना महामारी से परेशान हैं। चीन की वैक्सीन के महंगे दाम को लेकर नेपाल के लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। लेकिन ओली चीन के दबाव में आकर इस मुद्दे को दबाने की कोशिशों में लग गए हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए नेपाल चीन की बनी सिनोफर्म वैक्सीन के करीब 40 लाख डोज मंगा रहा है। सिनोफर्म वैक्सीन की एक डोज की कीमत करीब दस डालर है जोकि दूसरे देशों की वैक्सीन के मुकाबले बहुत ज्यादा है। ओली विरोधियों का कहना है कि ओली चीन को खुश करने के लिए चीन से इन वैक्सीनों की खरीद कर रही है। सिनोफर्म वैक्सीन की कीमत सार्वजनिक हो जाने से काठमांडौ में स्थित चीनी दूतावास ने ओली सरकार को आंख दिखाई है। नेपाल के लोग महसूस करते हैं कि उनका स्वाभाविक मित्र भारत ही है। भारत ने तो पड़ोसी होने के नाते वैक्सीन की पहली खेप मुफ्त में दी थी।
केपी शर्मा ओली एक तरफ यह कहते हैं कि कोरोना काल में जितनी मदद भारत से मिलने की उम्मीद थी उतनी नहीं मिली। भारत-नेपाल की सीमाएं खुली हैं। दोनों तरफ खेत-खलिहान हैं, एक घर सीमा के इस तरफ है तो एक घर सीमा के उस तरफ। यहां के लोगों के संबंध आपस में बने हुए हैं। दूसरी तरफ वह भारत विरोधी रुख अपनाए हुए है। जब ड्रेगन आंख दिखाता है तो ओली को भारत की याद आती है, लेकिन नेपाल की जनता का ध्यान भटकाने के लिए वह अपनी चालें चलते रहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर ओली ने हास्यास्पद बयान दिया। उन्होंने जो कुछ कहा उससे पता चलता है कि ओली अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व से बहुत पहले नेपाल में योग का अभ्यास किया जाता था। योग की उत्पत्ति भारत में नहीं हुई। जब योग की खोज हुई तब भारत का गठन नहीं हुआ था। नेपाल में योग के प्रचलन में आने के समय कई सीमांत राज्य थे। योग की उत्पत्ति नेपाल में उत्तराखंड के आसपास हुई। ओली इससे पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं कि भगवान राम का जन्म भारत के अयोध्या में नहीं, बल्कि नेपाल के चितवन जिले में स्थित अयोध्यापुरी के नाम से पहचाने जाने वाले माडी क्षेत्र में हुआ था। ओली ने यह भी कहा था कि नेपाल प्रसिद्ध संतों और पतंजलि कपिलमुनी, चरक जैसे महार्षियों की भूमि है। ओली अपना ही मनगढ़ंत इतिहास प्रस्तुत करते रहे हैं। उनका ‘राष्ट्रवाद’ झूठ पर आधारित है।
साधनों की पवित्रता का ख्याल किए बिना लक्ष्य तक पहुंचने के मैकियावेली के सिद्धांत पर अमल करने और चीन के एजैंट बनकर नेपाल की सत्ता सम्भालने वाले ओली की महत्वाकांक्षाओं का खामियाजा नेपाल की जनता भुगत रही है। उनके एक के बाद एक फैसले असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और निरंकुश और प्रतिगामी हैं। सुप्रीम कोर्ट कोई भी फैसला दे यह साफ है कि चीन के लिए ओली के पक्ष में समर्थन करना सम्भव नहीं रह गया। उन्हें चुनावों का सामना तो करना ही है, नेपाल की जनता उनके असली चेहरे को पहचान चुकी है।
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